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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 17 लिखे गये प्रतीत होते हैं। सुत्तनिपात के आमगंधसुत्त में भी ऐसे छंद का प्रयोग हुआ है। इस छंद में प्रत्येक पाद में बारह अक्षर होते हैं। इस प्रकार पूरे द्वितीय श्रुतस्कन्ध में कुल पैंतीस पद्यों का प्रयोग हुआ है। आचारांग की वाचनाएँ :- नंदिसूत्र व समवायांग में लिखा है कि आचारांग की अनेक वाचनाएँ हैं। वर्तमान में ये सब वाचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं किन्तु शीलांक की वृत्ति में स्वीकृत पाठरूप एक वाचना व उसमें नागार्जुनीय के नाम से उल्लिखित दूसरी वाचना- इस प्रकार दो वाचनाएँ प्राप्य हैं। नागार्जुनीय वाचना के पाठभेद वर्तमान पाठ से बिलकुल विलक्षण है। उदाहरण के तौर पर वर्तमान में आचारांग में एक पाठ इस प्रकार उपलब्ध है : कट्टु एवं अवयाणओ बिइया मंदस्स बालिया लद्धा हुरत्था। आचारांग अ. 5, उ. 1, सू, 145 इस पाठ के ब़जाय नागार्जुनीय पाठ इस प्रकार है : ज़े खलु विसए सेवई सेवित्ता णालोएइ, परेण वा पुट्टो निण्हवइ, अहवा तं परं सएण वा दोसेण पाविट्ठयरेण वा दोसेण उवलिंपिज्जत्ति । आचार्य शीलांक ने अपनी वृत्ति में जो पाठ स्वीकार किया है उसमें और नागार्जुनीय पाठ में शब्द रचना की दृष्टि से बहुत अन्तर है, यद्यपि आशय में भिन्नता नहीं है। नागर्जुनीय पाठ स्वीकृत पाठ की अपेक्षा अति स्पष्ट एवं विशद् है । उदाहरण के लिए एक और पाठ लें : विरागं रूवेसु गच्छेज्जा महया खुड्डएहि (एस) वा । - - आचारांग अ. 3, उ. 3, सू, 117. इस पाठ के बजाय नागार्जुनीय पाठ इस प्रकार है : Jain Education International त्रिसम्म पंचगम्मि वि दुविहम्मितियं तियं । भावओ सुटु जाणित्ता स न लिप्पइ दोसु वि।। नागार्जुनीय पाठान्तरों के अतिरिक्त वृत्तिकार ने और भी अनेक पाठभेद दिये For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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