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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 179 दूर्भावना से युक्त वचन भी असत्य ही कहलाएगा क्योंकि इसके पीछे भी व्यक्ति का प्रमादभाव सक्रिय रहता है। अतएव प्रमादवश सत्य अथवा असत्य भाषण भी असत्य कहलाता है। इस आधार पर सत्याणुव्रत का प्रारुप निर्धारित किया जा सकता है। इस संबंध में हम आचार्य समन्तभद्र के कथन का अवलोकन कर सकते हैं जिन्होंने सत्याणुव्रत की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए लिखा है - जो लोक विरूद्ध, राज्यविरूद्ध एवं धर्म विरूद्ध झूठ न स्वयं बोलता है न दूसरों से बुलवाता है साथ ही दूसरों की विपत्ति के लिए कारणभूत सत्य को न स्वयं कहता है, न दूसरों से कहलवाता है, वह सत्याणुव्रती है। सत्याणुव्रत के पांच अतिचार माने गए हैं- सहसाभ्याख्यान, रहस्याभ्याख्यान, स्वदारमंत्रभेद, मृषोपदेश तथा कूटलेखकरण । तत्वार्थसूत्र में ये अतिचार इस प्रकार से विवेचित हैं" - मिथ्योपदेश, असत्य दोषारोपण, कूटलेख-पकरण, न्यास-अपहार और मंत्रभेद। 1. सहसाभ्याख्यान : बिना सोच-विचार किये किसी के विषय में दोषारोपण करना। 2. रहस्याभ्याख्यान : किसी की गोपनीय बात अथवा भेद को प्रकट करके उसके साथ विश्वासघात करना । 3. स्वदारमंत्र : पति और पत्नी की गुप्त बातों को इनमें से किसी द्वारा दूसरों के सामने प्रकट करना । 4. मृषोपदेश झूठी 5. कूटलेखकरण : झुठा लेख लिखना, जाली दस्तावेज बनाना, मुद्राएँ बनाना । Jain Education International : सच्चा- झूठा कहकर अथवा बहकाकर किसी को कुमार्गी बनाना । (ग) अस्तेयाणुव्रत :- यह अचौर्य व्रत भी कहलाता है। किसी अन्य की वस्तु को उनकी अनुमति के बिना ग्रहण करना चौर्य कर्म कहलाता है। आचार्य उमास्वाति स्तेय के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं? - बिना दी हुई वस्तु ग्रहण करना चोरी है । अस्तेय स्तेय अथवा चौर्य कर्म का विपरीत भाव है। उपासकदशांग में अस्तेयाणुव्रत को स्पष्ट करते हुए लिखा गया है - स्थूल अदत्तादान का दो करण For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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