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________________ उपासकदशांग का समीक्षात्मक अध्ययन - डॉ. रज्जन कुमार जैन वाङ्मय आगम के नाम से प्रसिद्ध हैं। आगमों का जैन परम्परा में वही स्थान मान्य है जो वैदिक परम्परा में वैदों का और बौद्ध मत में पिटकों का स्थान निर्धारित है। जैन-परम्परा, इतिहास और संस्कृति की विशेष निधि आगम-शास्त्र ही है। यह अत्यन्त विशाल और समृद्ध होने के साथ-साथ सरल एवं गूढ़ तथ्यों से परिपूर्ण है। प्रायः जैनागमों में सांसारिक भोगों से विरत् रहकर वैराग्य पथ पर चलकर मुक्ति प्राप्त करने का संदेश ही मिलता है। परन्तु इसमें लौकिक जीवन के विभिन्न पक्षों पर भी पर्याप्त चिंतन किया गया है। जैनागमों में अंग साहित्य सर्वप्रमुख हैं और अंग साहित्य में उपासकदशांग एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें जैन श्रावकों की जीवनचर्या का जीवंत चित्र प्रस्तुत किया गया है जो जैन संस्कृति की विशिष्टता का परिचायक माना जा सकता है। आगम की परिभाषा :- आगम आप्त वचन हैं और आप्त वचन होने के कारण यह प्रामाणिक है। आगमों के संबंध में विद्वानों की मान्यता है कि ये गणधरों द्वारा रचित हैं। गणधर महावीर के साक्षात् शिष्य माने जाते हैं जो महावीर के उपदेशों को आगम के रुप में संकलित करते हैं।' इस रुप में आगम निःसंदेह आप्त वचन माना जा सकता है। अस्तु आगम को परिभाषित करते हुए इसे आप्त का कथन कहा गया है। प्रारम्भ में आगम को श्रुत या सम्यक् श्रुत के नाम से जाना जाता था कालांतर में यह आगम के नाम से प्रसिद्ध हो गया। आगम के लिए और भी कई शब्दों का प्रयोग किया जाता था जिसका विवरण अनुयोगद्वारसूत्र एवं विशेषावश्यक भाष्य में मिलता है। सूत्र, ग्रंथ, सिद्धांत, प्रवचन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापना आदि। ये सारे शब्द आगमों के विभिन्न पर्यायों के द्योतक माने जा सकते हैं। इसी को स्पष्ट करते हुए आचार्य मलयगिरि लिखते हैं - जिससे पदार्थों का परिपूर्णता के साथ मर्यादित ज्ञान प्राप्त हो, वह आगम है। विशेषावश्यक भाष्य में आगम के स्वरुप पर प्रकाश डालते हुए लिखा गया है कि जिससे सही शिक्षा प्राप्त होती है, विशेष ज्ञान प्राप्त होता है, वह शास्त्र, आगम या श्रुतज्ञान कहलाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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