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________________ 160 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा इस ग्रन्थ में कुछ रुपक कथाएँ भी हैं। दूसरे अध्ययन की कथा धन्ना सार्थवाह एवं चोर की कथा है। यह आत्मा और शरीर के संबंध का रुपक है। सातवें अध्ययन की रोहिणी कथा पाँच व्रतों की रक्षा और वृद्धी को रुपक द्वारा प्रस्तुत करती है। उदकजात नामक कथा संक्षिप्त है किन्तु इसमें जल-शुद्धि की प्रक्रिया द्वारा एक ही पदार्थ के शुभ एवं अशुभ दोनों रुपों को प्रकट किया गया है। अनेकान्त के सिद्धान्त को समझाने के लिए यह बहुत उपयोगी है। नन्दीफल की कथा यद्यपि अर्ध कथा है किन्तु इसमें रुपक की प्रधानता है। समुद्री अश्वों के रुपक द्वारा लुभावने विषयों के स्वरुप को स्पष्ट किया गया है। छठे अध्ययन में कर्मवाद जैसे गुरु गंभीर विषय को रुपक के द्वारा स्पष्ट किया है। गणधर गौतम की जिज्ञासा के समाधान में भगवान् ने तूंबे के उदाहरण से इस बात पर प्रकाश डाला कि मिट्टी के लेप से भारी बना हुआ तूंबा जल में डूब जाता है और लेप हटने से वह पुनः तैरने लगता है। वैसे ही कर्मों के लेप से आत्मा भारी बनकर संसार-सागर में डूबता है और उस लेप से मुक्त होकर उर्ध्वगति करता है। दसवें अध्ययन में चन्द्र के उदाहरण से प्रतिपादित किया है कि जैसे कृष्णपक्ष में चन्द्र की चारु चंद्रिका मंद और मंदतर होती है और शुक्लपक्ष में वही चंद्रिका अभिवृद्धि को प्राप्त होती है वैसे ही चन्द्र के सदृश कर्मों की अधिकता से आत्मा की ज्योति मंद होती है और कर्म की ज्यों-ज्यों न्यूनता होती है त्यों-त्यों उसकी ज्योति अधिकाधिक जगमगाने लगती है। ज्ञाताधर्मकथा पशुकथाओं के लिए भी उद्गम ग्रन्थ माना जा सकता है। इस एक ही ग्रन्थ में हाथी, अश्व, खरगोश, कछुए, मयूर, मेंढक, सियार आदि को कथाओं के पात्रों के रुप में चित्रित किया गया है। मेरुप्रभ हाथी ने अहिंसा का जो उदाहरण प्रस्तुत किया है, वह भारतीय कथा साहित्य में अन्यत्र दुर्लभ है। ज्ञाताधर्मकथा के द्वितीय श्रुतस्कंध में यद्यपि 206 साध्वियों की कथाएँ हैं किन्तु उनके ढांचे, नाम, उपदेश आदि एक-से हैं केवल काली की कथा पूर्ण कथा है। नारी-कथा की दृष्टि से यह कथा महत्वपूर्ण है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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