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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 141 * चंत्तारि सद्दावती, वियडावाती, 4/3071 13. जम्बूद्वीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाणिणं चुल्लहिमवंते, 2 / 281, वही सूचना 6/86 और 6/87 में वर्णित है। 14. महाहद के संबंध में जो सामग्री द्वितीय स्थान में 2/287-289 में वर्णित है वही सूचना 6ठें स्थान में 88 सूत्र में उपलब्ध है। 15. दुविहे अद्धोवमिए पण्णत्ते तं जहा-पालिओवमे चेव, सागरोवमे चेव, 2/4/4051 * ....... अट्ठविधे, ओसप्पिणी, उस्सप्पिणी, पोग्गलपरियट्टे, तीतद्धा, अणागतद्धा, सव्वद्धा । - 8/39 1 16. दुविहे दंसणे पण्णत्ते तं जहा - सम्मदंसणे चेव, मिच्छादंसणेचेव, 2/791 अट्ठविधे, सम्मदंसणे मिच्छादंसणे, सम्मामिच्छदंसणे, चक्खुदंसणे, अचक्खुदंसणि, ओहिदंसणे, केवलदसंणे, सुविणदंसणे । - 8/381 17. तिविहा तसा पण्णत्ता, तं जहा - तेउकाइया, वाउकाइया, उराला, तस, पाणा । - 3/326 स्थानांग । तिविहा थावरा पण्णत्ता, तं जहा - पुढविकाइया, आउकाइया, वणस्सइ काइया। -3/327 स्थानांग । छज्जीवणिकायापण्णत्ता, तं जहा पुढविकाइया, (आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सईकाइया) । तसकाइया । 6/6 · स्थानांग । 18. तिविहे पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा - मणपणिहाणे, वयपणिहाणे, कायपणिहाणे- 3/96, स्थानांग । - चउव्वहे, उवकरणपणिधाणे - 4/1/104, स्थानांग । , ...... 19. तिविहे सुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा मणसुप्पणिहाणे, वयसुप्पणिहाणे, काय-सुप्पणिहाणे। - 3/97 स्थानांग । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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