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________________ परमात्मा बनने की कला सुकृत अनुमोदना निर्भर करता है।' जब तक सहज मल राग-द्वेष की परिणति, संसार के अनुकूल पदार्थों के प्रति राग और प्रतिकूल पदार्थों के प्रति द्वेष है, तब तक अनुबन्ध खराब ही बंधते हैं। यह सहजमल अनादिकाल से है। इसे तोड़ने का उपाय क्या है? इसका विचार करना है। संसार के पदार्थों में सुख की बुद्धि सहजमल है। इसलिए संसार कैसा लगता है? यह विचार करना है। संसार खराब लगा कि नहीं..? इस दुनियाँ में राग-द्वेष ही मुझे नुकसान पहुँचाते हैं, यह दिमाग में बैठा या नहीं..? यदि बैठ गया तो सहज मल कम हुआ है और निश्चित पुण्य के अनुबन्ध की शुरूआत हो गई और एक बार भी पुण्य का अनुबन्ध जिसको शुरू हो गया, उसका मोक्ष सुनिश्चित है। पुण्यानुबन्धी पुण्यकामहत्त्व ___ सुरिपुरन्दर श्री हरिभद्रसूरीश्वर जी महाराज फरमाते हैं कि पुण्यानुबन्धी पुण्य मोक्ष का बीज है। जैसे बीज के बिना फल संभव नहीं, वैसे ही पुण्यानुबधी पुण्य के बिना मोक्ष संभव नहीं। इसलिए मोक्ष जाने से पहले पुण्यानुबन्धी पुण्य अनिवार्य है, और इसके आने पर यह समझ में आता है कि यह संसार मेरी इन्द्रियों को आनन्द देने वाला है, मेरे शरीर को सुख प्राप्त कराने वाला है, परिवार का पोषण करने वाला है, परन्तु मेरी आत्मा को आनन्द देने वाला नहीं। ये सभी तो अंत में छोड़कर जाने वाले हैं। इस दुनियाँ की एक भी चीज मेरे साथ चलने वाली नहीं है। इसलिए जीवन में प्रधानता आत्मा व धर्म की रहने वाली है, इसलिए उसे अनुबन्ध पुण्य का होने वाला है और ये ही मोक्ष के बीज हैं। यह अबंध्य की कीमत है, और इसकी विचारणा करनी चाहिए। जो लोग खाली शुभ-अशुभ प्रवृत्ति के विषय में पड़े हैं, उनका कुछ नहीं होता। मात्र पुण्य बांधने से काम नहीं होगा। पुण्यानुबन्धी पुण्य बांधना पड़ेगा। वह कब होगा? सहज मल का हास होगा तब...। सहज मल का हास किस प्रकार होगा? लौकिक पदार्थों में से सुख की बुद्धि नष्ट होगी तब..। संसार के पदार्थों में सुख नहीं, ऐसा हृदय में स्वीकार करें तो ही कुछ काम होगा। सुकृत की सच्ची अनुमोदना भी मिथ्यात्व की मंदता के बिना नहीं हो सकती है। मिथ्यात्व मंद करने के लिए आत्मा में शुभ अध्यवसाय अवश्य जागृत करने चाहिए। अरिहंत देवाधिदेव के प्रति विशिष्ट सद्भाव जागृत होगा तब ही शुभ अध्यवसाय प्रकट होंगे। इस प्रकार अरिहंत, सिद्ध इत्यादि तत्त्व प्रभावशाली तत्त्व हैं। इनको ऐसे हृदय में धारण किया जाए। ये सद्भाव शुभ अध्यवसाय को जागृत करके मिथ्यात्व को मंद बना देते हैं और हृदय में सुकृत की सच्ची अनुमोदना उल्लसित करते हैं। यह तो भगवन्त के प्रभाव 206 For Personal & Private Use Only Jain Education International . www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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