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________________ परमात्मा बनने की कला दुष्कृत गर्दा किया है, उनको प्रकट कर हलके बन जाओ। अनेक साधकों को शल्य भीतर चुभते रहते हैं, पर शल्य को निकाल नहीं पाते हैं या निकालने की ताकत नहीं है। दुष्कृत गर्दा में यही शल्य निकालने का कार्य करना है। ज्ञानी गीतार्थ गुरु के समक्ष अपने पापों की गर्दा करनी गुरु के लिए शास्त्रों में कहा गया है कि किसी ने अपने पापों को गुरु समक्ष कहा हो और गुरु उन पापों को किसी के समक्ष प्रकट कर देते हैं तो उन्हें भी नरक में जाना पड़ेगा। शास्त्र के आधार पर गुरु पर विश्वास पूर्वक वे अपने पापों को गुरु को बताते हैं और अपनी आत्मा की शुद्धि करते हैं। यदि गुरु गंभीर नहीं रह पाते हैं, उनके मन में लीकेज हो तो उन गुरु भगवन्तों का भी अनन्त संसार बढ़ जाता है। चार कान की बातें पाँचवें कान में नहीं जानी चाहिए। दो कान शिष्ट के, दो कान गुरु महाराज के; इनके सिवाय किसी को पता नहीं चलना चाहिए। साध्वी रुक्मिणी का चारित्र पवित्र था, परन्तु एक मात्र दृष्टिराग का शल्य नहीं निकाल पाने से एक लाख भव तक भटकना पड़ा। एक दोष अन्य भव में गुणाकार होकर प्रकट होते हैं। पुण्य कम हो जाता है और घोरातिघोर दुर्गतियाँ आगे से आगे खड़ी हो जाती गोशालेद्वारा दुष्कृतगहरे . समताधारी परमात्मा महावीर पर तेजोलेश्या फेंकने वाला व दो मुनि भगवन्तों को जलाकर भस्म कर देने वाला गोशाला उसी भव में समकित प्राप्त कर लेता है। गोशाला अपने पूर्वभवों में गुरु के समक्ष अपलाप करता था। अनेक आचार्य भगवन्तों की अवगणना, निन्दा करता था। वही पूर्वभव का शल्य इस भव में भी उदय में आया। .. जो आचार्य भगवन्त अथवा साधु-साध्वी जी भगवन्तों की निंदा करता है, बिना जाने उनके बारे में अपशब्द तथा बुराई करता है, उसको भी गोशाले के समान बनना पड़ेगा। मुनि भगवन्तों के साथ क्लेश नहीं करना। उनके प्रति दुर्भाव वैर नहीं पैदा होना चाहिए। उनके प्रति मधुर व्यवहार रखना चाहिए। __ गोशाले ने पिछले भव में गुरु के प्रति बुरा वर्तन किया, अतः गुणाकार होकर वही पाप उदय में आया और परमात्मा के साथ भी गलत वर्तन करने लगा। गलत संस्कार ऐसे भीतर डाल रखे थे, जिससे इस भव में परमात्मा को भी नहीं छोड़ा। उन पर भी केजोलेश्या फेंकने वाला बना। इस तेजोलेश्या की अग्नि के ताप से परमात्मा को छः महीने सक दस्त लगी। उपकारी गुरु भगवन्त पर ही गोशाले ने अपकार किया। Jain Education International 151 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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