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________________ * तत्त्वार्थसूत्र जैन साहित्य का आदि सूत्र-ग्रन्थ है। * व्याकरण के अनुसार जो कम से कम शब्दों में पूर्ण अर्थ बता दे, उसे "सूत्र" कहते हैं। * छन्द में गद्य की अपेक्षा कम शब्दों में अधिक विषय एवं सूत्र में छन्द की अपेक्षा कम से कम शब्दों में अधिक विषय समाहित होता है। * सूत्र अर्थात् गागर में सागर भरना। * सूत्र की रचना में आधी मात्रा बच जाने पर सूत्रकार पुत्रोत्सव समान सुख मानते हैं। * सूत्रों का निर्माण वैज्ञानिक पद्धति से होता है। * सूत्रों की रचना एवं क्रम युक्तिसंगत होता है। * सूत्र = धागा, साधक, संकेत। * जैसे सूत्र में पिरोई सुई गुमती नहीं,वैसे ही सूत्र का पाठी दुर्गति में भ्रमता नहीं है। नाम की सार्थकता) * यह ग्रंथ सूत्र रूप में है, इसलिए इसका “सूत्र" नाम सार्थक है। * “तत्त्वार्थ" नाम सार्थक है, क्योंकि इसमें 7 तत्त्वों का वर्णन है, जो कि 10 अध्यायों में निम्न प्रकार से है : | प्रारंभ के चार अध्याय जीव तत्त्व पाँचवाँ अध्याय अजीव तत्त्व छठवा एवं सातवाँ अध्याय आस्रव तत्त्व आठवाँ अध्याय बंध तत्त्व | नौवाँ अध्याय संवर व निर्जरा तत्त्व | दसवाँ अध्याय मोक्ष तत्त्व * अपर नाम मोक्षशास्त्र, क्योंकि प्रारंभ मोक्षमार्ग से एवं अंत में भी मोक्ष का वर्णन है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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