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________________ प्रकरण १ : द्रव्य-विचार [७३ अनादि-काल से वर्तमान हैं और अनन्तकाल तक रहेंगे। इनका कभी अभाव न था, न है और न होगा। परन्तु अमूक स्थिति विशेष की अपेक्षा से स्कन्ध और परमाण का प्रारम्भकाल और अन्तकाल दोनों संभव हैं। अर्थात् स्थिति-विशेष की अपेक्षा से स्कन्ध और परमाण में उत्पत्ति और विनाश दोनों होते हैं। इस उत्पत्ति और विनाश की एक सीमा है। जैसे- यदि कोई परमाणु या स्कन्ध किसी एक निश्चित स्थान पर ठहरते हैं तो वे अधिक से अधिक (उत्कृष्ट) असंख्यातकाल (संख्यातीतवर्ष) तक और कम से कम (जघन्य) एक क्षण (समय) तक वहाँ रहेंगे। इस उत्कृष्ट अवधि के बाद वे किसी न किसी निमित्त को पाकर क्षेत्रान्तर में अवश्य चले जाएंगे। यदि कोई परमाण या स्कन्ध किसी विवक्षित स्थान से स्थानान्तर में चला जाता है तो उसे पुनः उसी स्थान पर आने में कम-सेकम एक क्षण और अधिक से अधिक अनन्तकाल लग सकता है। मध्यम-सीमा का काल कम से कम (जघन्य) और अधिक से अधिक ( उत्कृष्ट) सीमा के बीच कोई भी हो सकता है। इस तरह रूपादि गुण से युक्त जो भी वस्तु दृष्टिगोचर होती है वह सब पुदगल-द्रव्य है। बौद्धदर्शन में भी पुद्गल शब्द का प्रयोग मिलता है परन्तु वहाँ पर इसका प्रयोग शरीरधारी-प्राणियों के लिए किया गया है ।२ १. एत्तो कालविभागं तु तेसि वुच्छं चउन्विहं ।। संतई पप्प तेऽणाई अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ।। असंखकालमुक्कोसं इक्कं समयं जहन्नयं । अजीवाण य रूवीणं ठिई एसा वियाहिया । अणंतकालमुक्कोसं इक्कं समयं जहन्नयं । अजीवाण य रूवीणं अंतरेयं वियाहियं ॥ -उ० ३६. ११-१४. २. पालि-अंग्रेजी शब्दकोष, पवर्ग, पृ० ८५. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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