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________________ उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन - महावीर का परिनिर्वाण बतलाया गया है। परन्तु ३६वें समवाय में, जहाँ पर उत्तराध्ययन के अध्ययनों के नाम गिनाये हैं, ऐसा कोई उल्लेख नहीं है ।२ इसके अतिरिक्त कल्पसूत्र में उल्लिखित पाठ से प्रतीत होता है कि भगवान् ने अपने परिनिर्वाण के समय ५५ पुण्यफल विपाक का और ५५ पापफल विपाक का कथन करने के उपरान्त बिना पूछे हुए ३६ अध्ययनों का भी कथन किया था। कल्पसूत्र के इस उल्लेख से ग्रन्थ में उल्लिखित कारिका (३६.२६९). और समवायांग से समन्वय हो जाता है। ग्रन्थ में एक स्थान पर और इसी प्रकार की गाथा है जहाँ पर क्षत्रिय-ऋषि संजय मुनि से कहते हैं कि विद्या और चारित्र से युक्त सत्यवादी-सत्यपराक्रमी ज्ञातपुत्र भगवान महावीर इस तत्त्व को प्रकट करके परिनिर्वाण को प्राप्त हो गए। इन उल्लेखों से सिद्ध होता है कि उत्तराध्ययन में महावीर का अन्तिम उपदेश है। अब यहाँ एक शंका उपस्थित होती है कि ऐसा स्वीकार करने पर नियुक्ति और उसके आधार पर लिखी गई जिनदासगणि महत्तर की चूर्णि और वादिवेताल शान्तिसूरि की टीका का यह कथन कि उत्तराध्ययन के कुछ अध्ययन अंगग्रन्थों से (जैसे-दृष्टिवाद से परीषह) लिए गए हैं, कुछ जिन-भाषित (जैसे-द्रुमपत्रक) हैं, कुछ प्रत्येक-बुद्धों (जैसे-कापिलीय) द्वारा प्ररूपित हैं और कुछ १. समणे भगवं महावीरे अंतिमराइयंसि पणपन्नं अज्झयणाई कल्लाणफलविवागाई पणपन्नं अज्झयणाई पावफलविवागाई वागरिता सिद्ध जाव सव्वदुक्खप्पहीणे । २. छत्तीसं उत्तरज्झयणा पण्णत्ता तं जहा......। -समवा०३६वां समवाय । ३. देखिए-पृ० २६, पा० टि० ३. ४. इइ पाउकरे बुद्धे नायए परिणिन्वुए । विज्जाचरणसंपन्ने सच्चे सच्चपरक्कमे । -उ० १८. २४. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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