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________________ प्रकरण ७ : समाज और संस्कृति [ ३६९ १ ५ चिकित्साचार्य ( रोगों का इलाज करने वाले ), ' नाविक ( नाव चलाने वाले) र सवार (घोड़े की सवारी करने वाले), 3 कर्षक ( खेती करनेवाले ) ४ तथा नाना प्रकार के शिल्पी ' आदि । कुछ वर्णसंकर जातियाँ भी थीं। वर्णसंकर जातियों में बुक्कुस और श्वपाक जातियों का उल्लेख मिलता है । 1 इन जातियों के अतिरिक्त गोत्रों में काश्यप गोतम, गग तथा वसिष्ठ गोत्र का; " कुलों में अगन्धन, भोग, गन्धन तथा प्रान्त ७ ૮ कुलों (सामान्य गरीबों के कुल - निम्न कुल ) का और वंशों इक्ष्वाकु तथा यादववंश का उल्लेख मिलता है । इस तरह उस समय सामाजिक संगठन वर्ण, जाति, गोत्र, कुल और वंश के आधार से कई भागों में विभक्त था । आश्रम व्यवस्था : वर्ण और जाति पर आधारित समाज में सांस्कृतिक संगठन की दृष्टि से आश्रम - व्यवस्था भी थी। जीवन की विभिन्न अवस्थाओं के विकासक्रम के अनुसार इन्हें चार भागों में विभक्त किया गया १. विज्जामंततिगिच्छगा । - उ० २०.२२. २. जीवो वच्चइ नाविओ । -उ० २३.७३. ३. हयं भद्द व वाहए । —उ० १.३७. ४. सु बीयाइ ववंति कासगा । -उ०१२.१२. ५. माहणभोइय विविहाय सिप्पिणों । Jain Education International - उ० १५.६. ६. देखिए - पृ० ३६८, पा०टि० २; उ० ३.४; जै० भा०स०, पृ० २२३. ७. उ० अध्ययन २६ प्रारम्भिक गद्य; १८.२२; २२.५; २७.१; १४.२६. ८. उ० २२.४२, ४४; १५.६,१३. ६. उ० १८.३६; २२.२७. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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