SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण ४ : सामान्य साध्वाचार [ २५ २. रजोहरण (गोच्छक) - जीवों की रक्षा करने तथा धूलि आदि साफ करने की मार्जनीविशेष | यह भी साधु के पास हमेशा रहती है क्योंकि प्रत्येक कायिक-क्रिया के प्रारम्भ में इसकी आवश्यकता पड़ती है । दिगम्बर - परम्परा के साधुओं का भी यह आवश्यक उपकरण है | ३. पात्र ( भाण्डक ) - लकड़ी, तू बी या मिट्टी आदि के बर्तन | इनका उपयोग आहार, जल आदि के लाने एवं रखने में होता है । आचाराङ्गसूत्र में आवश्यकतानुसार दो-चार पात्र रखने का उल्लेख मिलता है । " यह भी एक आवश्यक उपकरण है । दिगम्बरपरम्परा के साधु सिर्फ एक पात्र रखते हैं जिसे 'कमण्डलु' कहते हैं । ४. वस्त्र - पहिनने के कपड़े । ये वस्त्र साधारणकोटि के होते थे जिससे उनके प्रति ममत्व नहीं होता था । यद्यपि महावीर ने अचेल धर्म (नग्न रहने) का उपदेश दिया था परन्तु हरिकेशिबल को ‘अवमचेलए’ ( साधारणकोटि के वस्त्रवाला ) कहा है । इसके अतिरिक्त वस्त्रों को प्रतिदिन खोलकर उन्हें ठीक से देखने एवं जोहरण से उनका प्रमार्जन ( सफाई ) करने का विधान किया गया है । इससे स्पष्ट है कि साधु को वस्त्र रखने की छूट अवश्य थी परन्तु उनकी सीमा निश्चित थी । ५. पादकम्बल - इसका ग्रन्थ में दो जगह उल्लेख मिलता है । आत्मारामजी ने दोनों स्थानों पर भिन्न-भिन्न दो अर्थ किए १. आचाराङ्गसूत्र २.१.६. २. ओमचेलए पंसुपिसायभूए संकरसं परिहरिय कण्ठे । ३. देखिए - पृ० २५८, पा० टि० ३. ४. संथारं फलगं पीढं निसिज्जं पायकंबलं । अपमज्जियमारुहई पावसमणि त्ति वुच्चई || पडिले पत्ते अवउज्झइ पायकंबलं । पडिलेहाअणा उत्ते पावसमणि त्ति वच्चई || Jain Education International - उ० १२.६. —-उ० १७.७. -उ० १७.६. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy