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________________ प्रकरण २ : संसार [ १५६ ख. चारित्रमोहनीय - इस कर्म के उदय से सदाचार में प्रवृत्ति नहीं होती है । सदाचार में मूढ़ता पैदा करने वाले चारित्रमोहनीय के जिन दो भेदों का उल्लेख किया गया है उनके नाम ये हैं: १. कषाय (क्रोधादि मनोविकार) और २. नोकषाय (ईषत् मनोविकार)। कषायमोहनीय वह है जिसके प्रभाव से आत्मा के शान्त-निर्विकार स्वरूप में मलिनता पैदा हो। कषाय के क्रोध, अभिमान, माया और लोभ ये चार प्रमुख भेद हैं। इनमें से क्रोध और अभिमान द्वेषरूप हैं तथा माया और लोभ रागरूप हैं। क्रोधादि चार कषायों में सच्चारित्र को मलिन करने की शक्ति की तीव्रता एवं मन्दता के आधार से प्रत्येक के चार-चार भेद क्रने पर कषायमोहनीय के सोलह भेद हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त नोकषायमोहनीय भी किञ्चित् मानसिक विकाररूप होने के कारण कषायरूप ही है ।२ इनकी अपनी कुछ विशेषता होने के कारण इन्हें पृथक् गिनाया गया है। नोकषायमोहनीय के १. कषायमोहनीय के १६ भेद निम्नोक्त हैं: क. चार अनन्तानुबन्धी-क्रोध-मान-माया-लोभ ( दीर्घकाल-स्थायी तीव्र क्रोधादि करना )। ख. चार अप्रत्याख्यानावरणी-क्रोध-मान-माया लोम ( अनन्तानु बन्धी की अपेक्षा से कुछ कम काल स्थायी क्रोधादि करना)। ग.. चार प्रत्याख्यानावरणी-क्रोध-मान-माया-लोभ (अप्रत्याख्यानाव रणी की अपेक्षा कुछ कम काल स्थायी क्रोधादि करना) । घ. चार संज्वलन-क्रोध-मान-माया-लोभ (अत्यन्त स्वल्पकाल-स्यायी क्रोधादि करना) । विशेष-कषायमोहनीय' के इन १६ भेदों के चार प्रमुख विभागों में चारित्र को मलिन करने की शक्ति क्रमशः क्षीण होती गई है। -उ० ३३.११ (टीकाएँ). २. कषायसहवर्तित्वात् कषायप्रेरणादपि । हास्यादिनवकस्योक्ता नोकषायकषायता ।। - उद्धृत, उ० आ० टी०, पृ० १५३४. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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