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________________ १८] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन उनमें से वादर-पर्याप्तक के अनेक भेद हैं। जैसे : अंगार (धम रहित अग्नि), मुर्मर (भस्मयुक्त अग्निकण), अग्नि (सामान्यशूद्ध-अग्नि), अर्चि (समूल अग्निशिखा), ज्वाला (मूलरहित अग्निशिखा), उल्का, विद्युत् आदि । ५. वायुकायिक जीव-वायु ही है शरीर जिनका उन्हें वायुकायिक जीव कहते हैं। पृथ्वीकायिक की तरह इनके भी चार भेद हैं। उनमें से बादर-पर्याप्तक वायुकायिक के अनेक प्रकार हैं। जैसे : उत्कलिका ( रुक-रुक कर बहनेवाली ), मण्डलिका (चक्राकार), घन ( नरकों में बहनेवाली ), गुञ्जा ( शब्द करनेवाली), शुद्ध ( मन्द-मन्द पवन ), संवर्तक ( जो तृणादि को साथ में उड़ाकर बहती है ) आदि । इस तरह ग्रन्थ में संक्षेप से बादर ( स्थूल ) एकेन्द्रिय स्थावर जीवों का विभाजन किया गया है। रूपादि के तरतम-भाव के आधार से इनके अन्य अवान्तर अनेक भेद हो सकते हैं। सूक्ष्म एकेन्द्रिय सभी स्थावर जीवों का एक-एक ही भेद बतलाया गया है" क्योकि स्थूल में ही अवान्तर भेद संभव हैं। सभी सूक्ष्म १. बायरा जे उ पज्जत्ता णेगहा ते वियाहिया । इंगाले मुम्मुरे अगणी अच्चिजाला तहेव य ।। उक्का विज्जू य बोधव्वा णेगहा एवमायओ। एगविहमणाणत्ता सुहुमा ते वियाहिया ।। - उ० ३६.१०६-११०. २ दुविहा वाउजीवा उ" (शेष पृ० ६५, पा० टि० १ की तरह)। -उ० ३६.११७. ३. बायरा जे उ पज्जत्ता पंचहा ते पकित्तिया। उक्कलिया मंडलिया घणगंजा सुद्धवाया य ।। संवट्टगवाया य णेगहा एवमायओ। -उ० ३६.११८-११६. ४. देखिए-पृ० ६३, पा० टि० २.. ५. एगविहमणाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया । सुहुमा सव्वलोगम्मि एगदेसे य बायरा ॥ -उ० ३६.७७-७८, ८६, १००, ११०,११६-१२०. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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