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________________ ज्ञानविनय, दर्शन विनय, चारित्र विनय और उपचार विनय यह चार प्रकार का विनय है। ज्ञान विनय- बहुमान सहित ज्ञान को ग्रहण करना, ज्ञान का अभ्यास करना, स्मरण करना आदि ज्ञानविनय है। आलस्यरहित (निष्प्रमादी) होकर देशकालादि की विशुद्धि के ज्ञाता तथा शुद्ध मन वाले साधु के द्वारा बहुमानपूर्वक यथाशक्ति मोक्ष की प्राप्ति के लिये ज्ञान का ग्रहण, अभ्यास, स्मरण, चिन्तवन आदि करना ज्ञानविनय है। दर्शनविनय- पदार्थों के श्रद्धान में निशङ्कित्वादि लक्षण से युक्त होना अर्थात् निशंकितादि आठ गुणों से युक्त सम्यग्दर्शन का पालन करना दर्शनविनय है। जिनेन्द्र भगवान ने सामायिक आदि से लेकर लोकबिन्दुसार पर्यन्त श्रुतरूपी महासमुद्र में जिन पदार्थों का जैसा उपदेश दिया है, उनका उसी रूप से श्रद्धान करना किसी भी विषय में शंका नहीं करना तथा सम्यग्दर्शन के निशंकितादि गुणों को धारण करना दर्शन विनय है। चारित्रविनय- सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान से युक्त पुरुषों का सम्यक्चारित्र में समाहितचित्त होना चारित्रविनय है। सम्यग्ज्ञानवन्त और सम्यग्दृष्टि पुरुषों के पाँच प्रकार के दुश्चर चारित्रों का वर्णन सुनकर रोमाञ्च आदि के द्वारा अन्तर्भक्ति प्रकट करना, मस्तक पर अंजुलि रखकर प्रणाम करना आदि क्रियाओं के द्वारा आदर करना और भावपूर्वक चारित्र का अनुष्ठान करना चारित्रविनय जानना चाहिये। उपाचारविनय- पूजनीय आचार्यादि को सामने देखकर (पूजनीय आचार्यादि पुरुषों के आने पर उनको देखकर) खड़े हो जाना, उनके पीछे पीछे चलना, अंजुलि जोड़ना, उनकी वन्दना करना, उनकी आज्ञा में चलना आदि आत्मानुरूप आचरण उपचारविनय है। आचार्य के समक्ष न होने पर उनके परोक्ष में उनके प्रति काय से अंजुलि धारण करना, हाथ जोड़ना, नमस्कार करना, वचन से उनके गुणों का संकीर्तन करना, उनकी प्रशंसा करना, मन से उनके गुणों का स्मरण करना और मन-वचन-काय से उनके परोक्ष में भी उनकी आज्ञा का पालन करना 583 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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