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________________ इस मोहनीय कर्म की भी उत्कृष्ट स्थिति का बन्ध संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के ही होता है। मोहनीय कर्म का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के 70 कोड़ा, कोड़ी, एकेन्द्रिय पर्याप्तक के एक सागर, पर्याप्तक दो इन्द्रिय के पच्चीस सागर, पर्याप्तक तीन इन्द्रिय के पचास सागर, पर्याप्तक चतुरिन्द्रिय के सौ सागर और पर्याप्तक असंज्ञी पंचेन्द्रिय की उत्कृष्ट मोहनीय कर्म-स्थिति एक हजार सागर प्रमाण हैं। एकेन्द्रिय अपर्याप्तक के पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम एक सागर प्रमाण है। दो इन्द्रिय अपर्याप्तक, तीन इन्द्रिय अपर्याप्तक, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक के पल्योपम के असंख्यातवें भाग से कम स्व-पर्याप्तक की उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति समझनी चाहिये, अर्थात् अपर्याप्तक दो इन्द्रिय के मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति पल्य के संख्यातवें भागहीन पच्चीस सागर, अपर्याप्तक तीन इन्द्रिय के पल्योपम के संख्यातवे भाग हीन पचास सागर, अपर्याप्तक चतुरिन्द्रिय के पल्योपम के संख्यातवें भाग हीन सौसागर अपर्याप्तक असंज्ञी पंचेन्द्रिय के पल्योपम के संख्यातवें भागहीन एक हजार सागर तथा अपर्याप्तक संज्ञी पंचेन्द्रिय के अन्त: कोटाकोटी सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है। नाम और गोत्र की उत्कृष्ट स्थिति विंशतिर्नामगोत्रयोः। (16) The maximum duration of JIH Nama, body-making and I Gotra family-determining Karmas is 20 (Crore x Crore HMR Sagars for each. नाम और गोत्र की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोटा कोटि सागरोपम है। सागरोपम कोटाकोटी स्थिति का ऊपर से अनुवर्तन करना चाहिये, क्योंकि उनका प्रकरण चल रहा है। संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के नाम और गोत्र की उत्कृष्ट स्थिति 20 कोड़ा कोड़ी सागर है। एकेन्द्रिय पर्याप्तक की उत्कृष्ट स्थिति एक सागर के सात भागों में से दो भाग प्रमाण है। दो इन्द्रिय पर्याप्तक की नामगोत्र की उत्कृष्ट स्थिति पच्चीस सागर के सात भागों में से दो भाग प्रमाण है। तीन इन्द्रिय पर्याप्तक की उत्कृष्ट स्थिति पचास सागर के सात भागों में से दो भाग प्रमाण है चार इन्द्रिय पर्याप्तक की सौ सागर के सात भागों में से दो भाग प्रमाण है। असंज्ञी पंचेन्द्रियपर्याप्तक की एक हजार सागर के सात भागों में . 507 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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