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________________ कर्म विज्ञान: कर्मसिद्धान्त का विश्व कोष लोकभाषा में कहा जाता है-'यथा बीज तथा फलं' जैसा बोज वैसा फल। न्यायशास्त्र की भाषा में इसको कार्य-कारणभाव और अध्यात्मशास्त्र की भाषा में इसे क्रियावाद या कर्म-सिद्धान्त कह सकते हैं। भगवान महावीर अपने को क्रियावादी कहते थे। क्रिया ही कर्म बन जाती है। जो क्रियावादी होगा, वह लोक-परलोकवादी होगा। परलोकवादी आत्मवादी होगा। आत्मवादी का जीवन धर्म, नीति, लोक व्यवहार सभी में आदर्श और सहज पवित्रता लिये होगा। . भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित कर्मवाद या कर्म-सिद्धान्त विश्व के समस्त दर्शनों और आचार शास्त्रों में एक तर्कसंगत, नीति नियामक सिद्धान्त है। यह अध्यात्म की तुला पर जितना खरा है, नीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, न्यायशास्त्र और आचारशास्त्र की दृष्टि में भी उतना ही परिपूर्ण और व्यवहार्य है। संक्षेप में जो कर्म-सिद्धान्त को जानता है/मानता है और उसके अनुसार जीवन व्यवहार को संतुलित/संयमित रखता है वह एक आदर्श मानव, एक आदर्श नागरिक और आदर्श अध्यात्मवादी का जीवन जी सकता है। जैनमनीषियों ने कर्मवाद या कर्म-सिद्धान्त पर बहुत ही विस्तार से सूक्ष्मातिसूक्ष्म चर्चा की है। जीवन और जगत् की सभी क्रिया-प्रतिक्रियाओं के फल की संगति बैठाकर उसे वैज्ञानिक पद्धति से व्याख्यायित करने का प्रयास किया गया है। जिसे आधुनिक भाषा में कर्म-विज्ञान कह सकते हैं। यह मनोविज्ञान और परामनोविज्ञान की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। अतीत से वर्तमान तक के सैंकड़ों विद्वान विचारकों, व लेखकों के तथ्यपूर्ण निष्कर्षों के प्रकाश में तथा पौराणिक एवं अनुभूत घटनाओं के परिप्रेक्ष्य यह कर्म विज्ञान पुस्तक आपको कर्म-सिद्धान्त का विश्व कोष प्रतीत होगा। आठ भागों में समाप्त यह पुस्तक पठनीय, मननीय और सन्दर्भ देने के लिए अत्यन्त उपयोगी है। Jair Education Intemational For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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