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________________ ॐ ४९४ ॐ कर्मविज्ञान : भाग ८ * बिना किसी भी प्रकार के प्रलोभन की स्पृहा रखे बिना अप्रतिबद्ध, अस्तब्ध (बिना रुके), अप्रतिहत या अस्खलित रूप से इसके आचरण के लिये तैयार रहना चाहिए। अष्टम सोपान : कषाय और नोकषायों पर विजय के लिए तैयारी इससे पहले के पद्य में राग, द्वेष और प्रमाद पर विजय प्राप्त करने की बात समुच्चय में कही गई थी। यद्यपि छठे पद्य से लेकर तेरहवें पद्य तक में कही गई बातें क्रमशः कषायविजय, नोकषायविजय, योगों की निश्चलता, धर्म-शुक्लध्यान एवं वीतराग-अवस्था से सम्बन्धित हैं। आशय यह है कि सातवें से लेकर ग्यारहवें गुणस्थान तक मन की परिणाम धाराएँ हैं। उनकी उत्कृष्ट स्थिति भी एक मुहूर्त से भी कम बताई गई है। इसलिए बारहवें गुणस्थान पहुँचने तक साधना-जीवन पतन और उत्थान या ज्वार और भाटे की तरंगों के बीच झूलता रहता है। ऐसा होते हुए भी उनकी आन्तरिक दशा में तरतमता (न्यूनाधिकता) होने से उनकी पृथक्-पृथक् कक्षाएँ नियत की गई हैं। सातवें गुणस्थान से लेकर दसवें गुणस्थान तक क्रोध, मान और माया भाव तथा नौ नोकषाय भाव नष्ट हो जाते हैं, दसवें गुणस्थान में संज्वलन का (सूक्ष्म) लोभ ही रह जाता है। यही कारण है कि अगर उपशमश्रेणी वाला जीव हो तो ग्यारहवें गुणस्थान की भूमिका का स्पर्श करके फौरन पतन के चक्र में वापस लौट जाता है। यदि वह क्षपकश्रेणी वाला हो तो ग्यारहवें गुणस्थान का स्पर्श न करके दसवें से सीधा बारहवें (क्षीणमोह) गुणस्थान की भूमिका में प्रतिष्ठित हो जाता है, फिर उसके पतन का खतरा बिलकुल नहीं रहता। फलतः अन्तुमुहूर्त जितने समय में ही वीतरागता की पराकाष्ठा पर पहुँचकर वह अपने सहज परिपूर्ण केवलज्ञानकेवलदर्शन को प्राप्त कर लेता है। कषायों से शुद्ध आत्मा की रक्षा कैसे करें ? परन्तु सम्पूर्ण केवलज्ञान की स्थिति तक पहुँचने से पूर्व राग, द्वेष और कषायों से प्रतिपल सावधान रहकर उत्तरोत्तर कैसे उच्च सोपानों पर आरोहण कर सकता है ? इसके लिए कषाय पर पूर्ण विजय के लिए सातवाँ और आठवाँ पद्य इस प्रकार है “क्रोध प्रत्ये तो वर्ते क्रोध-स्वभावता, मान प्रत्ये तो दीनपणानुं मान जो। माया प्रत्ये माया साक्षी भावनी, लोभ प्रत्ये नहि लोभ-समान जो॥७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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