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________________ @ मोक्षप्रापक विविध अन्तःक्रियाएँ : स्वरूप, अधिकारी, योग्यता @ ४४३ 8 अन्तःक्रिया करने वाले अन्तकृत् महापुरुषों के जीवन अन्तकृद्दशा में वर्णित तीर्थंकर आदि के अतिरिक्त भी ‘अन्तकृद्दशासूत्र' में वर्णित विभिन्न प्रकार से अन्तःक्रिया करने वाले ९० अन्तकृत् साधकों का जीवन इसके लिए ज्वलन्त उदाहरण हैं। इनमें वालक भी हैं, वृद्ध भी हैं, युवक भी हैं, महिलाएँ भी हैं, प्रौढ़ भी हैं, राज-रानियाँ भी हैं, भोगों में पले हुए युवक भी हैं, किशोर भी हैं, गृहस्थ भी हैं, गृहस्थ में से साधु-जीवन में दीक्षित हुए अनगार भी हैं। ये सब अन्तकृत् महापुरुष इसलिए कहलाए कि इन्होंने उसी भव में समस्त कर्मों का अन्त करने वाली अन्तःक्रिया की। _ 'अन्तकृद्दशांगसूत्र' में विविध प्रकार से अन्तःक्रिया करने वाले अन्तकृत् साधकों के ८ वर्ग हैं। इसमें दो तीर्थंकरों-भगवान अरिष्टनेमि और भगवान महावीर के धर्म-शासनकाल में हुए विभिन्न भूमिका के अन्तकृत् साधकों के अन्तःक्रिया करने की संक्षिप्त जीवनगाथाएँ दी गई हैं। प्रथम वर्ग में द्वारिका के अन्धकवृष्णि नामक राजा एवं धारिणी रानी के गौतम, समुद्र, सागर, गम्भीर, स्तिमित, अचल, कांपिल्य, अक्षोभ, प्रसेन, विष्णु; इन १0 कुमारों (राजपुत्रों के नाम से १0 अध्ययन हैं। इन दसों ही राजकुमारों ने यौवनवय में पाणिग्रहण किया, तत्पश्चात् संसार की एवं भोगों की असारता, अनित्यता जानकर वैराग्यवासित हुएं और भगवान अरिष्टनेमि से दीक्षा ग्रहण की। ग्यारह अंगशास्त्रों का अध्ययन किया, तप-संयम अपनी आत्मा को भावित करते हुए मासिक भिक्षु-प्रतिमा अंगीकार की, गुणसंवत्सर तप किया। अन्तिम समय शत्रुजय पर्वत पर मासिक संलेखना-संथारा अंगीकार किया। इस प्रकार अन्तःक्रिया द्वारा अपने समस्त कर्मों का क्षय करके सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए। . इसी प्रकार द्वितीय वर्ग में ८ अध्ययन अक्षोभ, सागर, समुद्र, हिमवन्त, अचल, धरण, पूरण और अभिचन्द नाम से हैं। इन्होंने भी यौवनवय में विरक्त होकर रत्नत्रय की तप-संयम की आराधना की और गुणरत्न संवत्सर आदि तपश्चरण किया। मासिक संलेखना से अन्तःक्रिया द्वारा अपने समस्त कर्मों का क्षय करके मुक्ति प्राप्त की। इन १८ अध्ययनों के महान् आत्माओं ने यौवनवय में विरक्त होकर सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तप रूप मोक्षमार्ग की सम्यक् आराधना करके अन्तःक्रिया की ओर मोक्ष प्राप्त किया। ___ तीसरे वर्ग में १३ अध्ययन हैं। जिनमें भद्दिलपुर नगर के नाग नामक गृहपति की सुलसा नाम की भार्या के ६ सहोदर पुत्रों (अनीकसेन, अनन्तसेन, अजितसेन, अनिहतरिपु, देवसेन और शत्रुसेन) की विरक्ति तथा बेले-वेले तपस्या और पारणे १. देखें-अन्तकृद्दशासूत्र में वर्णित ९० महापुरुषों की विभिन्न उपायों से की गई अन्तःक्रिया का वर्णन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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