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________________ * भक्ति से सर्वकर्ममुक्ति : कैसे और कैसे नहीं ? २४३ के लिए की गई - उपासना यदि सच्चे मन और सही उद्देश्य के लिये की गई है तो उसका प्रभाव लोहे को पारस के स्पर्श से स्वर्ण बनने जैसा सत्परिणाम सामने लाता है । उपासक को उपास्य की विशेषताओं और विभूतियों का लाभ मिलता है और वह क्रमशः अधिकाधिक समुन्नत, शान्त और सन्तुलित होता चला जाता है। उपास्य की उपासना से उपासक का तादात्म्य : क्यों और कैसे ? उपास्य या आराध्य की स्थिति से जितना ही अधिक अपना सामीप्य स्थापित किया जाएगा, उसके जितना ही अधिक अनुकूल - समतुल्य बना जाएगा, जितनी ही श्रद्धा-भक्ति-निष्ठापूर्वक उसके गुणों को अपने में होने (अवतरित होने) का चिन्तन-मनन किया जाएगा, उतनी ही उपासक की क्षमताएँ, शक्तियाँ, सामर्थ्य एवं तीव्रता उसी अनुपात में वृद्धिंगत होती जाएँगी, उपासक उतना ही अधिक आध्यात्मिक विकास एवं आत्मिक गुण - सम्पदाओं से स्वयं लाभान्वित होता जाएगा। वीतराग परमात्मा अनन्त ज्ञानादि चतुष्टय से परिपूर्ण हैं, उनकी उपासना करने वाला उस अनन्त ज्ञानादि ऐश्वर्य को अपनी चेतना में पूर्णतया भर लेने का प्रयास करता है। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि परमात्मा प्रत्यक्ष सम्मुख विराजमान हों या परोक्ष, उनकी पर्युपासना करने वाला उनके बाह्य आकार- प्राकार आदि की अपेक्षा भी उनके गुणों के साथ अपने अन्तश्चक्षुओं से तादात्म्य साधने का प्रयत्न करता है, तो निश्चित है कि उसी ढाँचे में ढलता जाएगा। जो जिसे जितना अधिक चाहेगा, वह उसी के जैसा बनता चला जाएगा। परमात्मा की उपासना से एक दिन मनुष्य स्वयं परमात्मभाव को प्राप्त कर लेता है । ' उपासना श्रेष्ठ - चिन्तन और व्यक्तित्व निर्माण का माध्यम अतः उपासना श्रेष्ठ-चिन्तन और उत्कृष्ट व्यक्तित्व के निर्माण का एक सशक्त माध्यम है। मानवीय चिन्तन व्यक्तियों एवं वातावरण से प्रभावित होता है, उसकी गतिविधियाँ एवं अनुभूतियाँ भी उसी स्तर की होती हैं । चिन्तन के लिए जैसा माध्यम होता है, उसी स्तर का चिन्तन एवं क्रियाकलाप होता है । वातावरण का व्यक्ति पर प्रभाव पड़ता है। दुर्जन, अनाचारी या दुराचारी के सम्पर्क में रहने वाला व्यक्ति उससे प्रभावित होता है और संत-महात्मा के सान्निध्य में रहने वाला उनके आचरण को ग्रहण करता है । यह उनके व्यक्तित्व का प्रभाव है कि समीप आने वाला या सामीप्य स्थापित करने वाला तदनुरूप बन जाता है। पर्युपासना में कतिपय सावधानियाँ निराकार की उपासना के लिए अथवा जो सदेह जीवन्मुक्त तीर्थंकर परमात्मा प्रत्यक्ष नहीं हैं, उनकी उपासना के लिए भक्त को उपासना के क्रियाकृत्य का ऐसा १. 'अखण्डज्योति' से भाव ग्रहण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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