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________________ संवर और निर्जश का भ्रोत : श्रमणधर्म शुद्ध धर्म ही इस सब दुःखों से मुक्ति का एकमात्र उपाय धर्म जीवन का अमृत है। वह मनुष्य-जीवन में न हो तो कर्मों का निरोध या क्षय नहीं किया जा सकता। कर्मों के निरोध या क्षय के बिना सुख-शान्ति नहीं हो सकती। मनुष्य चाहता तो सुख-शान्ति है, वह क्लेश, अशान्ति, दुःख और पीड़ा या संताप कतई नहीं चाहता। परन्तु न चाहने मात्र से बाँधे हुए या आते हुए शुभाशुभ कर्मों को नष्ट नहीं किया जा सकता। कर्मों का क्षय या नये कर्मों के आस्रव का निरोध किये बिना दुःख, अशान्ति, क्लेश, संताप आदि अनिष्ट मिट नहीं सकते। आज विश्व में कहीं आतंकवाद का स्वर बुलन्द है तो कहीं उग्रवाद, कहीं प्रान्तवाद, कहीं राजनैतिकवाद, कहीं जातिवाद, कहीं सम्प्रदायवाद तो कहीं भाषावाद, कौमवाद या वर्गवाद का बोलबाला है। ये और इन जैसी अनेक समस्याएँ मनुष्य के समक्ष सिरदर्द बनकर खड़ी हैं। ये समस्याएँ चालू रहने पर अथवा इन समस्याओं को इन विभिन्न वादों वाले लोगों द्वारा चालू रखने पर क्या मनुष्य क्षणभर भी सुख-शान्ति, निश्चिन्तता, निर्भयता और सन्तुष्टि या तृप्ति की साँस ले सकता है ? इन समस्याओं को रखकर या रहने देकर न तो इन समस्याओं का खड़ा करने वाले अमनचैन पा सकते हैं और न ही इन समस्याओं से भयभीत और आतंकित लोग भी चैन की वंशी बजा सकते हैं। तब फिर मनुष्य मात्र की सुख-शान्ति की इच्छा कैसे पूर्ण हो सकेगी? क्या दूसरों की हिंसा करके, भ्रष्टाचार करके, अन्याय-अनीति का दुराचरण करके या असत्य या झूठफरेब से, ठगी और बेईमानी से बलात्कार और यौनाचार से, सुख-सुविधाओं के अत्यधिक सेवन से या विषयभोगों के अधिकाधिक उपभोग से अथवा विलासिता में प्रचुर रमण से अथवा दूसरों को लूटकर या शोषण करके प्रचुर धन बटोरने से सुख-शान्ति प्राप्त हो जाएगी? अनुभव कहता है-न तो उपर्युक्त विभिन्न वादों के रहने या रखने से सुख-शान्ति प्राप्त हो सकेगी और न ही हिंसादि पापाचरण करने से कोई व्यक्ति आज तक सुख-शान्ति प्राप्त कर सका है, न ही कर सकेगा। तब फिर कौन-सी।
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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