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________________ ५७२ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ व्यक्ति के लगने पर जख्म पैदा कर देते हैं, वैसे ही वे द्वेष के टुकड़े व्यक्ति, परिवार, राष्ट्र एवं समाज के शरीर को जख्मी बना डालते हैं। तीसरा विकल्प : द्वेष का राग में रूपान्तरण (३) द्वेष का राग में रूपान्तरण-जितनी शीघ्रता से राग द्वेष में परिवर्तित हो जाता है, उतनी शीघ्रता से द्वेष राग में परिवर्तित नहीं होता। द्वेष के कारण मनमुटाव, वैमनस्य, कलह, झगड़ा एवं वैर-विरोध होना आसान है, वह झटपट हो जाता है; किन्तु उक्त मनमुटाव, वैमनस्य, वैर-विरोघ और कलह को शान्त करना, परस्पर समझौता कर लेना, अथवा सम्बन्ध सुधारना बड़ा ही कठिन होता है। द्वेषभाव में ।' दोनों ही पक्ष हठ पर चढ़े हुए होते हैं। हठाग्रह, दुराग्रह या पूर्वाग्रह इतना अधिक परिपुष्ट हो जाता है, पक्ष-विपक्ष में द्वेष की गांठ इतनी मजबूत हो जाती है, कि उसे स्नेह या वात्सल्य की चोट लगाकर तोड़ना, अथवा पारस्परिक विद्वेष की गांठ को प्रेम का मरहम लगाकर खोलना अत्यन्त दुष्कर हो जाता है। पति-पत्नी, भाई-बहन, भाई-भाई, माता-पुत्र, पिता-पुत्र, सास-बहू, देवरानीजिठानी, ननद-भाभी का परस्पर स्नेहराग काफी तीव्र है, किन्तु किसी लेन-देन, कटुशब्द-प्रयोग या अन्याय एवं पक्षपात के व्यवहार के कारण अचानक ही पासा पलट जाता है। किसी एक पक्ष द्वारा मन में उसकी गांठ बांध लेने के कारण भूतपूर्व राग के द्वेष में बदलते देर नहीं लगती। उस द्वेष या वैर-विरोध की गांठ बंध जाने के कारण दोनों पक्ष वर्षों या जिंदगीभर तक एक दूसरे से बोलने, प्रेम से मिलने, एक साथ बैठने, यहाँ तक कि एक दूसरे का मुंह देखने अथवा एक दूसरे के यहाँ जानेआने को भी तैयार नहीं होते। इस प्रकार राग की द्वेषभाव में पलटी हुई स्थिति को पुनः रागभाव में पलटना अत्यन्त कठिन होता है। कुछ विरले ही ऐसे व्यक्ति होते हैं, जिनका परस्पर कटुता के कारण बढ़ा हुआ द्वेष शीघ्र ही रागभाव में पलट जाए। परन्तु कुछ व्यक्ति ऐसे पापभीरु, कर्मबन्धन से डरने वाले एवं समझदार होते हैं, जो द्वेष के कारण होने वाले आत्मा के भयंकर पतन, नुकसान एवं संतान में पड़ने वाले कुसंस्कारों से बचने के लिए परस्पर क्षमायाचना, अपनी भूल स्वीकार, पश्चात्ताप, विनय-व्यवहार, नम्रतापूर्वक समर्पण या समझौता करके उक्त द्वेष को या द्वेष से होने वाले वैमनस्य, कलह अथवा फूट को दूर कर पुनः परस्पर स्नेह और प्रेम से बंध जाते हैं। . सौराष्ट्र के चोटीला गाँव में विवाह करके आई हुई भूरीबाई का अपनी सास के साथ काफी वर्षों तक द्वेषभाव रहा। किन्तु भूरीबाई ने जब से कविवर्य पं. नानचन्द्रजी महाराज से परमशान्तिकारक नवकारमंत्र तथा उसकी सम्यक् आराधना के लिए ४ १. कर्म तेरी गति न्यारी भा. ८ से, पृ. १७, १८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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