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________________ मार्गणास्थान द्वारा संसारी जीवों का सर्वेक्षण-२ २५१ वेदमार्गणा का अल्प-बहुत्व-पुरुष सबसे थोड़े हैं। स्त्रियाँ पुरुषों से संख्यातगुणी अधिक हैं और नपुंसक स्त्रियों से अनन्तगुणे हैं। तिर्यंच-स्त्रियाँ तिर्यञ्च पुरुषों से तीन गुनी अधिक हैं, मनुष्य स्त्रियाँ मनुष्य पुरुषों से सत्ताईस गुनी और सत्ताईस अधिक हैं। देवियाँ देवों से बत्तीस गुनी और बत्तीस अधिक हैं। एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय पर्यन्त सब जीव, असंज्ञि पंचेन्द्रिय और नारक, ये सब नपुंसक ही हैं। इसलिए नपुंसक स्त्रियों की अपेक्षा अनन्तगुणे माने गए हैं। कषायमार्गणा का अल्प-बहत्व-मान कषाय वाले सब कषायों से थोड़े हैं, क्रोधी मानियों से विशेषाधिक हैं, मायावी क्रोधियों से विशेषाधिक हैं और लोभी मायावियों से विशेषाधिक हैं। ___ज्ञान-मार्गणाओं का.अल्प-बहुत्व-मन:पर्यायज्ञानी अन्य सब ज्ञानियों से थोड़े हैं। अवधिज्ञानी मन:पर्यायज्ञानियों से असंख्यगुणे हैं; मतिज्ञानी तथा श्रुतज्ञानी आपस में तुल्य हैं, परन्तु अवधिज्ञानियों से विशेषाधिक हैं तथा विभंगज्ञानी श्रुतज्ञान वालों से असंख्यातगुणे हैं। केवलज्ञानी विभंगज्ञानियों से अनन्तगुणे हैं। मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी परस्पर तुल्य हैं, किन्तु केवल-ज्ञानियों से अनन्तगुणे हैं। . संयम-मार्गणाओं का अल्प-बहुत्व-सूक्ष्म सम्पराय चारित्र वाले अन्य चारित्र वालों से,अल्प हैं। परिहार विशुद्धि चारित्र वाले सूक्ष्म सम्पराय चारित्रियों से संख्यातगुणे हैं। यथाख्यातचारित्र वाले परिहार विशुद्धि चारित्रियों से संख्यातगुणे हैं। छेदोपस्थापनीय चारित्र वाले यथाख्यातचारित्रियों से संख्यातगुणे हैं। सामायिक चारित्री छेदोपस्थापनीय-चारित्रियों से संख्यातगुणे हैं। देशविरति वाले सामायिक चारित्रियों से असंख्यातगुणे हैं। अविरति वाले देशविरतों से अनन्तगुणे हैं।. सूक्ष्मसम्परायचारित्री उत्कृष्ट दो सौ से नौ सौ तक, परिहारविशुद्धिचारित्री उत्कृष्ट दो हजार से नौ हजार तक और यथाख्यातचारित्री उत्कृष्ट दो करोड़ से नौ करोड़ तक हैं। इसलिए इन तीनों चारित्रियों का उत्तरोत्तर संख्यातगुणा अल्प-बहुत्व माना गया है। परन्तु छेदोपस्थापनीय चारित्रवाले उत्कृष्ट दो सौ करोड़ से नौ सौ करोड़ तक हैं। सामायिक चारित्र वाले उत्कृष्ट दो हजार करोड़ से नौ हजार करोड़ तक हैं। अतः इनका भी उत्तरोत्तर संख्यातगुणा अल्प-बहुत्व माना गया है। दर्शन मार्गणाओं का अल्प-बहुत्व-अवधिदर्शनी सब दर्शन वालों से अल्प हैं। चक्षुर्दर्शनी अवधिदर्शन वालों से असंख्यातगुणे हैं। केवलदर्शनी चक्षुर्दर्शन वालों से अनन्तगुणे हैं। अचक्षुर्दर्शन केवलदर्शनियों से भी अनन्तगुणे हैं। १. (क) पण-चउ-ति-दु-एगिदि, थोवा तिन्नि अहिया अणंतगुणा। तस-थोव-असंखग्गी, भू-जलनिल-अहिय वण णंता ॥ ३८॥ . (शेष पृष्ठ २५२ पर) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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