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________________ ९६ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ मोह की मन्दतों से, समाज का नैतिक स्तर सुदृढ़ होता है, समाज में नैतिक - धार्मिक सुसंस्कार सुदृढ़ होते हैं, उस तरफ समाज में प्रायः दुर्लक्ष्य है। यह ठीक है कि योगों के संकोच या निरोध के परिणाम वरूप प्रदेशबन्ध अल्पमात्रा में बँधता है, परन्तु दूसरी ओर, कषाय की तीव्रता से अनुभागबन्ध और. स्थितिबन्ध प्रबलरूप से बंधता है। अतः वर्तमान युग के मानव जितना योगों के संकोच या निरोध पर ध्यान देते हैं, उतने कषाय- संकोच या कषाय-निरोध पर ध्यान दें तो कर्ममुक्ति की ओर बहुत ही शीघ्रता से पहुँच सकते हैं। अर्थात्-मोक्ष नगर, जो करोड़ों कोस दूर रहे हैं, वह शीघ्र ही निकट आ सकता है। कषाय या राग-द्वेष के संकोच या निरोध अथवा विजय के प्रति उपेक्षा के कारण वर्तमान युग का मानव अपने दैनिक व्यवहार में कितना असत्याचरण, मायाचार, दम्भ, कपट, छल, विश्वासघात, आडम्बर, प्रपंच, अहंकार, ममकार, मद, क्रोध, अतिस्वार्थ, ईर्ष्या, लोभ, द्वेष, वैरविरोध आदि का सेवन करता है इसका सही नापतौल शायद ही कर पाता है । आगमों में स्पष्ट प्रतिपादन है कि स्थूल हिंसा की अपेक्षा सूक्ष्महिंसा, अर्थात् आत्महिंसा; अथवा द्रव्यहिंसा की अपेक्षा भावहिंसा ही महान् पाप की हेतु है। इसी प्रकार हिंसा, असत्य आदि के बाह्य आचरण की अपेक्षा उनके आन्तरिक आचरण से आत्मा संसार के कीचड़ में गहरा से गहरा धंसता चला जाता है, और फिर उस जीव के उद्धार की आशा प्रतिक्षण कम होती चली जाती है। अतः कषाय ही आत्मा पर चढ़ता जाने वाला मैल है, कर्ममल है। और वह मैल ज्यों-ज्यों कम होता जाता है, त्यों-त्यों आत्मा निर्मल होता जाता है । इसीलिए सम्यग्दृष्टि और विवेकी पुरुष बाह्य योग और प्रवृत्ति की अपेक्षा आत्मा द्वारा यथाशक्य कषाय और रागद्वेष का सेवन कम हो, उस ओर अधिक लक्ष्य देते हैं । १ आत्मा में कषायभाव की शक्ति कर्मपुद्गलों में संक्रान्त होती है स्थूलदृष्टि से यह कहा जाता है कि जड़ पुद्गल रूप कर्मवर्गणा के परमाणु जीव को यथायोग्य फल देते हैं, किन्तु जड़ कर्मपुद्गलों में कौन-सी ऐसी शक्ति है, जो जीव को कर्मबन्ध के अनुरूप फल दे देते हैं। कर्मविज्ञान इसका समाधान देता है कि यह सच है कि कर्म में अपने आप में कोई शक्ति नहीं है, जो शक्ति है, वह आत्मा की है। कर्म में फलगर्भिता शक्ति आत्मा की शक्ति द्वारा ही निर्मित होती है। आत्मा के कषाय भाव द्वारा ही शक्ति ( वैभाविक भावशक्ति) जड़ कर्म - परमाणु में उत्पादित होती है । वस्तुतः कर्मों की फलशक्ति आत्मा की अपनी ही शक्ति है। जिसके रोम-रोम में सर्प का विष चढ़ गया है, ऐसे मनुष्य पर कोई मंत्रसिद्ध व्यक्ति १. कर्म अने आत्मानो संयोग से भावांशगहण, पृ. ३१, ३२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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