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________________ कर्मफल : यहाँ या वहाँ, अभी या बाद में ? ३२९ बैल यहाँ चर रहे हैं, ध्यान रखना।" महावीर तो समौन अपने ध्यान में मग्न थे । उन्हें इस दुनियादारी के प्रपंचों से कोई मतलब नहीं था, न ही उन्होंने अपनी ओर से बैलों की रखवाली या निगरानी रखने की स्वीकृति या अस्वीकृति दी थी। बैल चरते- चरते काफी दूर चले गए। ग्वाला जब लौटकर आया तो बैल महावीर के आसपास नहीं मिले। ग्वाले ने बहुत देर तक इधर-उधर खोज की, मगर बैल नहीं मिले। फिर ग्वाले ने पूछताछ की तो मौनी महावीर ने उसे कुछ भी उत्तर न दिया। उसे इन पर पूरा शक हो गया कि हो न हो, इसी बाबा ने मेरे बैल कहीं छिपाये हैं। अतः फिर बैलों को ढूँढ़ने दूर-दूर तक चला गया। वह खोजते खोजते थक गया, मगर बैल नहीं मिले। जब वह वापस लौटा तो संयोगवश बैल महावीर के आसपास चरते दिखाई दिये। ग्वाला गुस्से में तमतमाया हुआ तो था ही, उसने लकड़ी के टुकड़े को छीलकर आगे से तीखा एक कीला बनाया और ध्यानस्थ महावीर के कानों में यह कहते हुए ठोक दिया- "मेरे बैल चुराने / छिपाने का मजा चख ले।” भगवान् महावीर ने अपने ज्ञान में देखा कि यह त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में शय्यापालक के कानों में खौलता हुए शीशे का रस उड़ेलने के दुष्कर्म का फलभोग (विपाक) है। अतः उन्होंने उसे समभाव से सहन किया।' इतना अवश्य है कि उन्होंने कर्मफल भोगते समय हिंसक प्रतीकार या कर्मफल भुंगवाने में निमित्त (ग्वाले) के प्रति मन में किसी प्रकार का रोष या द्वेष भी नहीं किया। इस कारण उस कर्म का फल भोगने के पश्चात् वह क्षीण होकर आत्मा से पृथक् हो गया। अगर वे प्रतीकार करते या मन में रोष या द्वेष करते तो फिर नया कर्मबन्ध कर लेते और फिर उसका दुःखद फल भोगना पड़ता । यह है - परलोक (पूर्वजन्म) में किये हुए कर्म के इस लोक में फल भोगने का ज्वलन्त उदाहरण ! कर्मफल सभी सांसारिक जीवों को अवश्य भोगने पड़ते हैं कई-कई व्यक्ति तो कर्मफल की मजाक उड़ाते हुए अथवा हँसते-हँसते क्रूर कर्म करते हुए अहंकारपूर्वक कहते हैं-"क्या होता है - कर्मफल ? सारी शक्ति मेरे हाथ में है। मैं चाहे जो कुछ कर सकता हूँ। मेरा कौन बिगाड़ने वाला है ?” परन्तु ऐसे तीसमारखाँ पर कृतकर्मों के फल के रूप में जब संकटों और कष्टों का दुःखद पहाड़ टूट पड़ता है, तब वे आकुल व्याकुल होकर विलाप करने लगते हैं या रो धोकर रह जाते हैं। इस प्रकार समभाव से कर्मफल न भोगने के कारण उनके नये कर्म फिर बंध जाते हैं, जिनका दुःखद फल उन्हें भोगना पड़ता है। १. देखें - कल्पसूत्र विवेचन ( उपाचार्य देवेन्द्रमुनि) में भगवान् महावीर का जीवनवृत्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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