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________________ सामाजिक सन्दर्भ में - उपयोगिता के प्रति आक्षेप और समाधान ८९ दूसरा समाधान यह भी सागारधर्मामृत में दिया गया है कि बन्ध (कर्मबन्ध) और मोक्ष (कर्ममुक्ति) एकमात्र भावों (परिणामों) पर आधारित है। यदि ऐसा न होता तो सर्वत्र जीवों से ठसाठस भरे लोक में व्यक्ति कैसे अपनी चर्या कर सकता और कैसे (कर्मों) से मुक्त हो पाता ? तीसरा समाधान दशवैकालिक में इस प्रकार दिया गया है कि समस्त प्राणियों के प्रति आत्मभूत तथा सर्व जीवों के प्रति समभाव से ओतप्रोत एवं आनव त्यागी होकर व्यवहार या कार्य करता है तो पापकर्म का बन्ध नहीं होता ।" निष्कर्ष यह है कि कर्मविज्ञान के अनुसार पूर्वोक्त प्रकार से समाजगत एवं समष्टिगत जीवन जीने में न तो कहीं पापकर्मबन्ध का भय है, न ही भावहिंसा होने अथवा अप्रमत्त साधक द्वारा साम्परायिक कर्मबन्ध होने का खतरा है। सामाजिक और वैयक्तिक जीवन में कर्म से नहीं, पापकर्म से बचने का निर्देश उत्तराध्ययन सूत्र में बताया है कि "जो व्यक्ति अपने तथा अपनों के लिए पापकर्म करके धन जुटाता है, किन्तु उक्त पापकर्म के फल भोगने के समय वे लोग कोई भी उसके हिस्सेदार नहीं बनते। उसे अकेले को ही भोगना पड़ता है। आचारांग सूत्र में बताया है कि उक्त पापकर्म के फलस्वरूप रोगादि उत्पन्न होने पर या कारागार आदि बन्धन में पड़ने पर अथवा दुर्गति में दुःख एवं यातना पाने पर वे अपने माने हुए सम्बन्धी या दूसरे व्यक्ति, अथवा जिनके साथ वह वास करता है, वे निज के लोग न तो उसकी रक्षा करने या शरण देने में समर्थ होते हैं, न ही वह उनकी रक्षा कर सकता है, न शरण दे सकता है। या तो पहले वे निज के लोग उसे छोड़ देते हैं, या उसकी १. (क) कम्मं च पडिलेहाए, कम्ममूलं च जं छणं ।" (ख) "अप्रादुर्भावः खलु रागादीन अहिंसा।" (ग) “प्रमादहीनोऽत्र भवत्यहिंसकः, प्रमादयुक्तस्तु सदैव हिंसकः।" (ग) विष्वग्जीव चित्ते लोके क्व चरन् कोऽप्यमोक्ष्यतु, भावैक साधन बन्ध-मोक्षौ चेन्नाभविष्यत ? (घ) देखें- दशवै. ४/८ (ङ) वही. ४/९ (च) जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइ ।" २. उत्तराध्ययन अ. ४गा. २, ४ Jain Education International For Personal & Private Use Only - आचारांग १/३/१ धवला पु. १४/५-६ - सागार धर्मामृत २३ - आचारांग १ www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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