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________________ ४३६ कर्म-विज्ञान : कर्म का विराट् स्वरूप (३) कर्म के नियम अटल है विश्व में प्रत्येक राज्य के हर डिपार्टमेंट को व्यवस्थित रूप से चलाने और नियंत्रण में रखने के लिए कानून-कायदे बने होते हैं। समाज के सुचारु रूप से संचालन और नियमन करने हेतु नियमोपनियम बने होते हैं। इसी प्रकार धार्मिक क्षेत्र में भी धर्मसंघों को सुव्यवस्थापूर्वक चलाने, धर्म तथा धार्मिकों के प्रति आस्था, श्रद्धा और भक्ति को सुदृढ़-सुस्थिर रखने एवं धर्मानुसार जीवन-व्यवहार चलाने के लिये आचार-संहिता तथा समाचारी. बनी होती है। पुलिस विभाग के लिये पुलिस मेन्युअल तथा पी. डब्ल्यु. डी. विभाग के लिये उसका मेन्युअल होता है। इसी प्रकार विश्व के प्रत्येक प्राणी के अपने-अपने अच्छे-बुरे, कटु-मृदु, क्रूर-करुण, तथा अहत्व-निरहंत्व, लोभ-निर्लोभ, स्वार्थ-परमार्थ आदि से युक्त विचारों, वचनों एवं कार्यों का उसे यथोचित सुफल-दुष्फल मिल सके, इसके लिए कर्म का सार्वभौम तथा अटल नियम (कानून) है। सारा विश्व कर्म के अटल नियम (कानून) के अनुसार चलता है, इसमें रत्तीभर भी गड़बड़ी नहीं होती। कर्म के नियमों में कोई अपवाद नहीं __कर्म के कानून की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें किसी के लिये कोई भी रू-रियायत या मुलाहिजा नहीं होता। विश्व के समस्त कानून-कायदों में कोई न कोई अपवाद (ExceptiontotheruleProviso) आदि होते हैं; धार्मिक नियमों और आचार-संहिताओं में भी उत्सर्ग और अपवाद होता है, मगर कर्म के कानून में प्रायः अपवाद नहीं होता। जड़ कर्म पुद्गलों में भी असीम शक्ति साधारण व्यक्ति यह समझते हैं कि कर्म तो पुद्गल हैं, जड़ हैं, उनमें क्या शक्ति होगी? परन्तु यह उनका भ्रम है। जड़ पदार्थों में भी असीम शक्ति होती है। अणुबम, परमाणु बम बहुत छोटा होता है, क्रिकेट की गेंद के आकार का-सा, उस छोटे-से बम का चमत्कार तो हम सुन चुके हैंहीरोशिमा और नागासाकी जैसे दो विशाल और सुन्दर शहरों को बिलकुल नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था। जड़ बम का धमाका लाखों मनुष्यों के लिए विनाशलीला का सृजन कर सकता है, यह वस्तु आज के मानव से छिपी नहीं है। अणुबम (Atom bomb) आकार में बहुत ही छोटा होता है, किन्तु शक्ति की अपेक्षा वह सहस्रों विशाल बमों से अधिक कार्य करता है। अब तो १. कर्मनो सिद्धान्त (हीराभाई ठक्कर) से सारांश पृ. २ २. कर्मनो सिद्धान्त (हीराभाई ठक्कर) पृ. २ से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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