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________________ कर्म - विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१) - कोई तीस वर्ष पूर्व इंग्लैण्ड में पोर्ट्स साउथ रोड इशर कस्बे के पास जो भी मोटर गुजरती, उसे बंदूक की गोली इस तरह लगती कि शीशे, छत या दरवाजे पर एक इंच का साफ सीधा गोलाकार छिद्र हो जाता। पुलिस-दल या स्कॉटलैण्ड यार्ड का वैज्ञानिकदल इस अप्रत्याशित घटना का सुराग नहीं पा सका। अन्त में, परोक्ष जीवन (पुनर्जन्म) और अदृश्य जगत् पर विश्वास करने वाले परामनोवैज्ञानिकों ने इस घटना की गहराई से छानबीन की तो पता लगा कि पहले यह 'क्लेयर माउंट स्टेट' एक जागीरदार और मोटर मालिक 'ड्यूक ऑफ न्यु कौंसिल' के पास थी । उसने 'विलिय केन्ट' नामक ठेकेदार से एक झील तैयार करवाई। तैयार होने पर 'ड्यूक' ने उसका पैसा दबा लिया और उसे मारकर उसी झील में फिंकवा दिया। वही क्षुब्ध आत्मा (प्रेतात्मा) शायद 'ड्यूक' मोटर मालिक के प्रति तथा साथ ही मोटरों के प्रति भी घृणा और आक्रोश पूर्वक उस वैर का बदला ले रहा हो। " १०४ प्रेतात्मा (यक्ष, राक्षस, भूत, प्रेत आदि) बनकर इस प्रकार पूर्वजन्म में स्वयं को दुःखी करने वाले से उक्त वैर का प्रतिशोध लेने की घटनाएँ विविध जैन कथाओं, वैदिक पुराणों आदि में आती हैं। द्वारिका नगरी के यादवकुमारों द्वारा द्वैपायन ऋषि को छेड़ने, उन्हें पत्थर मारकर निष्प्राण करने से अगले जन्म में अग्निकुमार (भवनपति) देव बनकर द्वारिकानगरी को भस्म करने के रूप में वैर का बदला लेने की घटना प्रसिद्ध है। २ ये सभी घटनाएँ आत्मा और कर्म के अस्तित्व तथा पूर्वजन्म- पुनर्जन्म की सत्ता को सिद्ध करती हैं। तीस व्यक्तियों की साक्षीपूर्वक प्रेतात्मा के अस्तित्व का प्रत्यक्षीकरण अठारहवीं सदी के अन्तिम चरण से उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ तक क्रियाशील पादरी 'एब्राहम क्युमिंग्ज' ने १८२६ में एक किताब छपाई, जिसका नाम है "इम्मोर्टिलिटी प्रूव्ड बाइ द टैस्टीमनी ऑफ साइंस"। ७७ पेज की इस पुस्तक में एक कप्तान बटलर की मृत - पत्नी की प्रेत छाया के बारे में विवरण छपा है । पादरी क्युमिंग्ज ने इस पुस्तक में अपने हस्ताक्षर सहित ३० व्यक्तियों की शपथ पूर्वक की गई घोषणा भी छापी है, जिन्होंने उक्त मृतात्मा को कई बार देखा व सुना था । ' १ अखण्ड ज्योति मई १९७४ में प्रकाशित लेख से, पृ. ३३ २ देखिये - अन्तकृद्दशा सूत्र का द्वारिकादहनप्रकरण ३ अखंडज्योति, अप्रैल १९७७ में प्रकाशित "अतृप्त आकांक्षाओं से पीड़ित भूत-प्रेत " पृ. २८ से Jain Education International ६ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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