SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परामनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में पुनर्जन्म और कर्म ९७ दुर्घटना के कुछ समय बाद श्रीमती पोलक गर्भवती हुई तो उन्हें रह-रहकर यही लगता रहा कि उनके पेट में दो जुड़वाँ लड़कियाँ हैं। डॉक्टरी जांच करने पर वैसा प्रमाण न मिला, किन्तु बाद में यथासमय दो जुड़वाँ लड़कियाँ ही जन्मीं। एक का नाम रखा गया-'गिलियन' और दूसरी का 'जेनिफर'। इन दोनों के शरीर पर वे ही निशान पाये गए, जो उनके पूर्वजन्म में थे। इतना ही नहीं, उनकी आदतें भी मृत लड़कियों जैसी ही थीं। इन दोनों लड़कियों को मृत लड़कियों के बारे में कुछ भी बताया नहीं गया था, फिर भी कुछ बड़ी होने पर ये आपस में पूर्वजन्म की घटनाओं की चर्चा करने लगीं। समयानुसार उन दोनों ने अपने पूर्वजन्म के अनेक संस्मरण सुनाकर तथा अपने उपयोग में आने वाली अनेक वस्तुओं की जानकारी देकर यह सिद्ध कर दिया कि इन दोनों ने इसी घर में पुनः जन्म लिया है। ___ कर्मसिद्धान्तानुसार-पूर्वजन्म में इसी घर या परिवार के मोहममत्वजनित कर्मवश इस जन्म में भी इसी घर में उन दोनों का जन्म हुआ। इससे आत्मा और कर्म का अविच्छिन्न प्रवाहरूप से अस्तित्व प्रतिफलित होता है। एक केस में पूर्वजन्म-स्मरणकर्ता व्यक्ति के पिछले जन्म में पेट का ऑपरेशन चिन्ह, अगले जन्म में भी उसी स्थान पर एक विशेष लकीर के रूप में पाया गया। इसके अतिरिक्त पूर्वजन्म में जिस प्रकार की दुर्घटना हुई हो, उसके स्मरणकर्ता को उस स्तर का वातावरण देखते ही अकारण डर लगने लगता है। जैसे-किसी की मृत्यु बन्दूक की गोली से, बिजली कड़कने या गिरने से हुई है तो उसका स्मरणकर्ता साधारण पटाखों की आवाज से भी डरने लगता है। पानी में डूबने से मृत्यु हुई हो, तो वह जलाशयों को देखते ही अकारण डरने लगता है। . पूर्वजन्म की स्मृति संजोये रहने वालों में आधे से अधिक ऐसे थे, जिनकी मृत्यु पिछले जन्म में २० वर्ष से कम आयु में हुई थी। डॉ. स्टीवेंसन का कहना है कि पूर्वजन्म-स्मरण का केस देखते ही उस बच्चे से छोटी उम्र में ही पूछताछ करनी चाहिए, क्योंकि ५-६ वर्ष के होने पर पूर्वजन्म की बातें वे प्रायः भूलने लगते हैं। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे भावुक संवेदनाएँ समाप्त होती जाती हैं। मनुष्य कामकाजी, बहुधंधी या दुनियादार बनता जाता है। भावनात्मक कोमलताएँ जितनी कठोर होती १. अखण्ड ज्योति, जुलाई, १९७४ के लेख से सारांश पृ. १२-१३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy