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________________ परामनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में पुनर्जन्म और कर्म वृत्तान्तों की स्वयं जांच-पड़ताल की। पूर्णतया उस घटना की प्रामाणिकता .की जांच करने के बाद उन्होंने निष्कर्ष प्रस्तुत किये। इन में ऐसे बच्चों की भी घटनाएँ हैं, जिन बच्चों के माता-पिता या वंशपरम्परा में 'पुनर्जन्म' को सामान्यतया नहीं माना जाता था। उन बच्चों ने पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की जो बातें बताई, वे सचमुच आश्चर्यचकित कर देने वाली है। " आत्मा और कर्म को अस्वीकार करने वाले, तथा पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को नहीं मानने वाले जिन-जिन लोगों ने उन घटनाओं की गहरी जांच की, परीक्षा की, उन बच्चों का भी प्रत्यक्ष साक्षात्कार किया, और अन्त में उन्हें स्वीकार करना पड़ा कि आत्मा है, कर्म है और पूर्वजन्म - पुनर्जन्म भी है। उन सत्य घटनाओं को वे असत्य कैसे सिद्ध कर पाते ? उन बालकों के मुँह से कही हुई पूर्वजन्म की बातें सही निकलीं, आज भी उनका उत्तर दे पाना कठिन है। ९१ पुनर्जन्म को प्रत्यक्षवत् सिद्ध कर दिया परामनोवैज्ञानिकों ने इन परामनोवैज्ञानिकों ने समस्त परोक्षज्ञानियों के तर्कों, युक्तियों, प्रमाणों एवं आप्तवचनों को बहुत पीछे छोड़ दिया, पूर्वजन्म की घटनाओं के अनुसन्धान से उन्होंने प्रत्यक्षवत् सब कुछ सिद्ध कर बताया। इससे पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म के विषय में जो तर्क, प्रमाण, युक्ति तथा अनुभव आदि प्रस्तुत किये गये थे, वे निरर्थक नहीं हुए, बल्कि उनकी सार्थकता और ..पुष्टि में चार चांद लग गए। परामनोविज्ञान विज्ञान की ही एक शाखा है। सर्वप्रथम आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध करने हेतु मनोवैज्ञानिकों ने पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को जानने का प्रयत्न किया, उनके इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए परामनोवैज्ञानिक आगे आए। परामनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत चार तथ्य उन्होंने प्रत्यक्ष प्रयोग करके पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म के अस्तित्व को सिद्ध करने के साथ-साथ आत्मा के अनादित्व को और प्रवाहरूप से कर्म के अनादित्व को भी सिद्ध कर दिया है। इतना ही नहीं, परामनोविज्ञान ने विविध घटनाओं की जांच पड़ताल करके चार तथ्य प्रस्तुत किये हैं १. (क) 'घट-घट दीप जले' (युवाचार्य महाप्रज्ञ) में देखें, 'पूर्वजन्म - पुनर्जन्म' पृ. ५४, ५७ (ख) अखण्ड ज्योति, जुलाई १९७४ में प्रकाशित 'मरने के साथ ही जीवन का अन्त नहीं हो जाता,' लेख का सारांश पृ. १२ (ग) जैनदर्शन में आत्मविचार (डॉ. लालचन्द्र जैन) पृ. २२२ For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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