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________________ ५३२ षट्प्राभृते [५. १३८कुच्छियधम्मम्मि रओ कुच्छियपासंडिभत्तिसंजुत्तो। .. कुच्छियतवं कुणंतो कुच्छियगइभायणं होई ॥१३८॥ कुत्सितधर्मे रतः कुत्सितपाषण्डिभक्तिसंयुक्तः । कुत्सिततपः कुर्वन् कुत्सितगतिभाजनं भवति ॥१३८॥ (कुच्छियधम्मम्मि रओ) कुत्सितधर्मे हिंसाधर्मे रतस्तत्परोऽनुरागवान् । ( कुच्छियपासंडिभत्तिसंजुत्तो) कुत्सिता ऋषिपत्नीपादपद्मसंलग्नमस्तका ये पार्षण्डिनो वशिष्ठदुर्वासःपाराशरयाज्ञवल्क्यजमदग्निविश्वामित्रभरद्वाजगौतमगर्गभार्गवप्रभृतय उपनिषत्प्रान्ते उक्ताश्च अतीता वर्तमानाश्च तेषां पार्षडिनां 'भक्तिसंयुक्तः करयोटनपादपतनभोजनदानादितत्परमनाः । (कुच्छियतवं कुणंतो ) कुत्सितं तपः एकपादेनोभीभूतोर्ध्वहस्तजटाधारणत्रिकालजलस्नानपंचाग्निसाधनादिकुत्सितं तपः कुर्वन् । (कुच्छियगइभायणो होइ) कुत्सितगते रकतिर्यग्योनिमलिनासुरव्यन्तरज्योतिष्ककिल्विषिकवाहनदेवादिगर्भाजनं स्थानं भवति-अनन्तसंसारी च स्यात् । "ब्रह्मणे ब्राह्मणमालभेत" इत्यादि कुत्सितो धर्मो ज्ञातव्यः । गाथार्थ-जो कुत्सित धर्म में अनुरागी है, कुत्सित पाषण्डियों को भक्तिसे सहित है और कुत्सित तप करता है, वह कुत्सित गतिका पात्र होता है ।।१३८॥ विशेषार्थ-जो कुत्सित धर्म-हिंसा धर्म में तत्पर रहता है, जो कुत्सित अर्थात् ऋषि होकर भी स्त्रियों के चरण कमलों में मस्तक झुकाने वाले वशिष्ठ दुर्वासा पराशर याज्ञवल्क्य जमदग्नि विश्वामित्र भरद्वाज गौतम गर्ग तथा भार्गव आदि उपनिषदों में कहे हए अतीत और वर्तमान काल-सम्बन्धी पाषण्डी साधुओं की भक्ति से सहित है-हाथ जोड़ना चरणों में पड़ना तथा भोजन देना आदि कार्योंमें तत्पर रहता है और जो कुत्सित तप अर्थात् एक पेरसे खड़े रहना, एक हाथ ऊंचा रखना, जटा धारण करना, तोनों काल में स्नान करना तथा पञ्चाग्नि तपना आदि मिथ्या तप करता है वह कुत्सित गति अर्थात् नरक तिर्यञ्च योनि, मलिन असुरकुमार व्यन्तर ज्योतिष्क किल्विषिक तथा वाहन जाति के देव आदि खोटो गतियोंका पात्र होता है-अनन्त संसारी होता है ॥१३८॥ १. भक्तिसंयुक्ताः म०। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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