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________________ -५. ११८ ] भावप्राभृतम् ५०३ 'अथ चतुरशीतिलक्षगुणा विव्रियन्ते । तद्यथा - हिंसा, अनृतं स्तेयं, मैथुनं, परिग्रहः, क्रोधः, मानः, माया, लोभः, जुगुप्साः, भयं, अरतिः, रतिः, मनोदुष्टत्वं, वचनदुष्टत्वं, कायदुष्टत्वं, मिध्यात्वं, प्रमाद पिशुनत्वं अज्ञानं, इन्द्रियानिग्रहत्वं, एकविंशतिदोषा वर्जनीयाः । अतिक्रमव्यतिक्रमातिचारानाचारा एते चत्वारो दोषा वर्ण्यन्ते । 2 अतिक्रमो मानसशुद्धहानिर्व्यतिक्रमो यो विषयाभिलाषः । तथातिचारः करणासत्वं भंगो ह्यनाचार इह व्रतानां ॥ १ ॥ गुणानां चतुरशीतिर्भवति । सा चतुरशीति दशकाय संयमैर्गुणिता चतुरशीतिशतानि भवन्ति । ते दशशीलाविराधनंगुणिताः चतुरशीतिसहस्राणि गुणा भवन्ति । कास्ताः शीलविराधनाः ? स्त्रीसंसर्गः १, सरसाहारः २, सुगन्धसंस्कारः ३, कोमलशयनासनं ४, शरीरमण्डनं ५, गीतवादिश्रवणं ६, अर्थग्रहणं ७, अब चौरासी लाख उत्तरगुणों का वर्णन करते हैं- १ हिंसा, २ झूठ, ३ चोरी, ४ मैथुन, ५ परिग्रह, ६, क्रोध, ७ मान, ८ माया, ९ लोभ, १० जुगुप्सा, ११ भय, १२ अरति, १३ रति, १४ मनोदुष्टता, १५ वचन दुष्टता, १६ कायदुष्टता, १७ मिथ्यात्व, १८ प्रमाद, १९ पिशुनंता, २० अज्ञान और २१ इन्द्रियानिग्रह ये इक्कीस दोष छोड़ने के योग्य हैं । इनकी अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार और अनाचार इन चार दोषों द्वारा प्रवृत्ति होती है अतः इक्कीस में चारका गुणा करने पर चौरासी भेद होते हैं। अतिक्रमो -- मन की शुद्धिका नष्ट होना अतिक्रम है, विषयोंकी अभिलाषा होना व्यतिक्रम है, क्रिया करनेमें आलस्य करना अतिचार है और व्रतोंका भङ्ग करना अनाचार है। ऊपर कहे चौरासी भेदोंमें दश काय सम्बन्धी, दश संयमों अर्थात् सौ का गुणा करने पर चौरासी सो भेद होते हैं । उनमें शोलकी दश विराधनाओं का गुणा करने पर चौरासी हजार भेद होते हैं । प्रश्न - शील की दश विराधनाएं कौन कौन हैं ? उत्तर – १ स्त्री संसर्ग, २ सरसाहार, ३ सुगन्धसंस्कार, ४ कोमल शयनासन, ५ शरीर मण्डन, ६ गीत वादित्र श्रवण, ७ अर्थं ग्रहण, २. दर्शनप्राभूतस्य नवमगाथायाः टीकायामपि वर्णनमस्ति । १. दशकायसंयमभेदैः पृथिव्याक्ति जीवसमासैरित्यर्थः । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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