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________________ -५. ४७ ] सो णत्थि तं पएसो चउरासीलक्खजोणिवासम्मि । भावविरओ वि सवणो जत्थ ण दुरुदुल्लिओ जीव ॥४७॥ स नास्ति त्वं प्रदेशः चतुरशीतिलक्षयोनिवासे । भावविरतोऽपि श्रमणो यत्र न भ्रान्तः जीव ||४७|| पदखण्डनारूपेण व्याख्यानं क्रियते । हे जीव ! हे चेतनस्वरूपात्मन् ! ( जत्थ ) यत्र प्रदेशे । ( तं ) त्वं भवान्ं । ( ण दुरुदुल्लिओ ) न भ्रान्तः स प्रदेश ः संसारे नास्ति । कस्मिन्, ( चउरासीलक्खजोणिवासम्मि ) चतुरशीतिलक्षयोनिवासे स्थाने । कथंभूतस्त्वं, ( भावविरओ वि समणो ) श्रमणो दिगम्बरो - ऽपि सन् भावविरतो जिनसम्यक्त्वरहितः । उक्तं च 'गुम्मटसारग्रन्थे नेमिचन्द्रेण मणिना - भावप्राभृतम् णिन्चिदरघाटु सत्तय तरु दस वियलदिएसु छच्चेव । सुरनरयतिरियचदुरो चउदस मणुएं सदसहस्सा ॥ १ ॥ अस्या अयमर्थः - नित्यनिकोतजीवानां सप्तलक्षा जातयः ७००००० । इतरनिगोदजीवानां जातमः सप्तलक्षाः ७००००० । धातूनां पृथिवीकायजीवानां अप्कायजीवानां तेजःकायजीवानां वायुकायजीवानां जातयः चतुर्णां प्रत्येकं सप्तलक्षाः । पृथ्वी ७००००० । अप ७००००० । तेजः ७००००० । वायु ७००००० । तरु दह — वनस्पतिकायजीवानां जातयो दशलक्षा १०००००० । विर्यालिदिएसु छन्देव — द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियजीवानां जातयः समुदायेन षड्लक्षाः । द्वीन्द्रिय Jain Education International www ३४५ गाथार्थ - हे जीव ! चौरासी लाख योनियों के निवास में वह प्रदेश नहीं है जहाँ तू भावरहित साधु होकर न घूमा हो ||४७ || विशेषार्थ - हे चेतन स्वरूप आत्मन् ! यह संसार चौरासी लाख योनियोंका निवास स्थान है । इतने बड़े संसार में ऐसा एक भी प्रदेश नहीं है जहाँ तू भाव-रहित - जिन सम्यक्त्व से रहित दिगम्बर साधु होकर भो नहीं घूमा हो । भावरहित दिगम्बर मुद्रा संसार से पार करने वाली नहीं है । चौरासी लाख योनियों का वर्णन करते हुए नेमिचन्द्र आचार्य ने गोम्मटसार ग्रन्थ में कहा है णिच्छिवर - इस गाथाका अर्थ यह है - नित्यनिगोद जीवोंकी सात लाख, इतर निगोद जीवोंकी सात लाख, धातु अर्थात् पृथिवी कायिक, जुलकायिक, अग्निकायिक और वायु कायिक जीवों में प्रत्येक सात सात लाख, वनस्पति कायिक जीवोंकी दश लाख, विकलेन्द्रिय अर्थात् द्वीन्द्रिय, १. गोम्मटसार इति प्रचलितं नाम । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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