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________________ षट्प्राभृते [४: ३९-४०एरिसगुणेहि सव्वं अइसयवंतं सुपरिमलामोयं । ओरालियं च कायं णायव्वं अरहपुरिसस्स ॥३९॥ ईदृशगुणः सर्वः अतिशयवान् सुपरिमलामोदः । औदारिकश्च कायः ज्ञातव्यः अर्हत्सुरुषस्य ॥३९॥ (एरिसगुणेहिं सव्वं ) ईदृशगुणैः संयुक्तः सर्वः कायोऽर्हत्पुरुषस्य ज्ञातव्य इति सम्बन्धः । ( अइसयवंतं सुपरिमलामोयं ) अतिशयवान् सुष्ठ अतिशयेन परि... मलेन विमर्दोत्थगन्धेन कर्पूरादिना सदृश आमोदो गन्धविशेषो यत्र काये स सुपरिमलामोदः । ( ओरालियं च कायं ) परमौदारिकः कायः शरीरमहत्पुरुषस्य भवति स्थिरः स्थूलरूपश्चक्षुर्गम्य औदारिक उच्यते । ( णायव्वं अरहपुरिसस्स ) ज्ञातव्यो वेदितव्यः कायोऽर्हत्पुरुषस्य श्रीमद्भगवदर्हत्सर्वज्ञवीतरागस्य शरीरं. ज्ञातव्यमित्यर्थः ॥३९॥ आगे भाव-निक्षेप की अपेक्षा अरहन्त का वर्णन करते हैंमयरायदोसरहिओ कसायमलवज्जिओ य सुविसुद्धो। चित्तपरिणामरहिदो केवलभावे मुणेयव्वो ॥४०॥ मदरागदोषरहितः कषायमलवजितश्च सुविशुद्धः । चित्तपरिणामरहितः केवलभावे ज्ञातव्यः ।।४०॥ ___ गाथार्थ-अरहत भगवान् का औदारिक शरीर ऐसे गुणोंसे युक्त, अतिशयों से सहित और उत्तम सुगन्धि से परिपूर्ण जानना चाहिये। द्रव्य-निक्षेप की अपेक्षा उक्त गुणविशिष्ट औदारिक शरीर ही अरहन्त हैं ।।३९।। विशेषार्थ-श्रीमान् भगवान् अरहन्त सर्वज्ञ वीतराग देवका परमो. दारिक शरीर पूर्वोक्त गुणोंसे संयुक्त, अतिशयों से सहित तथा संमदनमोड़ने से उत्पन्न होने वाली कपूर आदि के समान उत्तम गन्ध से परिपूर्ण जानना चाहिये। उनका यह शरीर स्थिर, स्थूलरूप तथा नेत्रोंके द्वारा गम्य होता है-दिखाई देता है। [३७, ३८ और ३९ वीं माथा में अरहन्त भगवान के शरीर का वर्णन किया गया है । यहाँ द्रव्यनिक्षेप की अपेक्षा शरोर को ही अरहन्त कहा है। ] ॥३९॥ ___ गाथार्थ-भाव-निक्षेप की अपेक्षा अरहन्त भगवान् को मदरहित, राग-रहित, दोष-रहित, कषाय-रहित, नो-कषाय--रहित अतिशय विशुद्ध, मनोव्यापार-रहित और क्षायिक भावोंसे युक्त जानना चहिये । Jain Education International For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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