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________________ -४. २७ ] बोधप्राभृतम् १८१ जिनमार्ग- बाह्य' यत्तीर्थं जलस्थानादिकं तन्न माननीयं । तत्किम् ? गङ्गायमुना-सरयू-नर्मदातापी-मागधीगोमतीकपीवतीरवश्यागंभीराकालतोया कौशिकी कालमही तो ग्राऽरुणा' निभुरा लोहित्य समुद्र कन्धुकाशोणनद बीजामेखलोदुम्बरी पनसातमसा प्रभृशा शुक्तिमती पम्पास रश्छत्रवती चित्रवती माल्यवती वेणुमती विशालानालिका सिन्धुपारा निष्कुन्दरी बहुवचारम्या सिकतिनीकुहासमतोयाकञ्जा कपिवती निविन्ध्या जम्बूमती - वसुमत्यश्वगामिनी - शर्करावती - सिप्राकृतमाला परिञ्जापनसाऽवन्तिकामा हस्तपानीका गन्धुनी व्याघ्री चर्मण्वती शतभागानन्दाकरभवेगिनी-क्षुल्लतापीरेवा-सप्तपारा - कौशिकी पूर्वदेशनद्यः । उक्तं च ब्राह्मणमते प्रागुदीच्ची विभजते हंसः क्षीरोदकं यथा । विदुषां शब्दसिद्धयर्थं सा नः पातु शरावती ॥ अथ दक्षिणे - तैला - इक्षुमती नक्ररवा चङ्गा स्वसना वैतरणी भाषवती महिन्द्रा शुष्कनदी सप्तगोदावरं गोदावरी मानससरः सुप्रयोगा कृष्णवर्णा सन्नीरा प्रवेणी कुब्जा धैर्या चूर्णी वेला शूकरिका अम्बर्णा । मधुरता को प्राप्त होता है उसी प्रकार पुण्य पुरुषों से निरन्तर अधिष्ठित तीर्थ जगत् को पवित्र करने वाले होते हैं। जिनमार्गसे बाह्य जो जलस्थान - नदी सरोवर आदि तीर्थस्थान हैं वे माननीय नहीं हैं । जैसे गङ्गा, यमुना, सरयू, नर्मदा, ताप्ती, मागधी, गोमती, कपीवती, अवश्या, गम्भीरा, कालतोया, कौशिकी, कालमही, तोग्रा, अरुणा, निभुरा, लोहित्य, समुद्र, कन्धुका शोणनद, बीजा, मेखला, उदुम्बरी, पनसा तमसा प्रभृशा, शुक्तिमती, पम्पासरोवर, छत्रवती, चित्रवती, माल्यवती, वेणुमती, विशाला, नालिका, सिन्धु पारा, निष्कुन्दरी, बहुवज्जा, रम्या, सिकतिनी, ऊहा, समतोया, कज्जा, कपीवती, पिविन्ध्या, जम्बूमती, वसुमती, अश्वगामिनी, शर्करावती, सिप्रा, कृतमाला, परिज्जा, पनसा, अवन्तिकामा, हस्तिपानी, कागंधुनी, व्याघ्री, चर्मण्वती, शतभागा, नन्दा करभवेगिनी, क्षुल्लतापी, रेवा, सप्तपारा, . कौशिकी आदि पूर्वदेश की नदियाँ । ब्राह्मणमत में कहा भी है प्रागु- जिस प्रकार हंस दूध और पानीका विभाग करता है उसी प्रकार जो पूर्व और उत्तर देशों का विभाग करती है तथा जो विद्वानों की शब्दसिद्धिका कारण है वह शरावती नदी हम सबकी रक्षा करे । १. तोग्वा म० । २. सिकतनीम्यूहा म० । ३. हस्ति म० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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