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________________ -४. १-२ ] बोधप्राभृतम् १३७ दुसुयुश्च" इत्यनेन प्राकृतव्याकरणसूत्रेण हि स्थाने सुरादेशः, बहुवचने तु पञ्चम्याः सुणह इत्येवं भवति मध्यमस्य । कथंभूतं बोधप्राभृतं ? ( जिणमग्गे जिणवरेह जह भणियं ) जिनमार्गे जिनशास्त्रे जिनवर : केवलिभिर्यथा येन प्रकारेणायतनादिभिर्भणितं प्रतिपादितं । किमर्थं जिनैर्भणितं ? (सयलजणबोहणत्थं ) सर्वभव्यजीव - सम्बोधननिमित्तं । किं कृत्वा पूर्वं वुच्छामि ? ( वंदित्ता आयरिए ) वन्दित्वाऽऽचार्यान् तृतीयपरमेष्ठिपदस्थान् गुरून् । कथंभूतानाचार्यान् बहु सत्थ अत्थ जाणे अनेक शास्त्र ज्ञायकान् । पुनः कथंभूतानाचार्यान् ( संजम सम्मत्तंसुद्ध तवयरणे ) संयमश्च चारित्र, सम्यक्त्वं च सम्यग्दर्शनं शुद्धं निरतिचारं तपश्चरणं च द्वादशविधं तपो येषां ते संयमसम्यक्त्वशुद्धतपश्चरणास्तान् संयमसम्यक्त्वशुद्धतपश्चरणान् । भूयोऽपि कथंभूतानाचार्यान् ? ( कसायमलवज्जिदे ) क्रोध, मान, माया, लोभ, लक्षणचतुष्कषायमलवर्जितान् कषायोत्पन्नपापरहितानित्यर्थः । अपरं कथंभूतानाचार्यान् ? (सुद्धे ) शुद्धान् षट्त्रिंशद्गुणप्रतिपालनेन निर्मलान् निष्पापान् । के ते षट्त्रिंशद्गुणा इत्याह , नमस्कार करके जो कि अनेक शास्त्र तथा उनके अर्थ के ज्ञाता हैं, सम्यकचारित्र, सम्यग्दर्शन और निरतिचार बारह प्रकारके तपके धारक हैं, क्रोध मान माया लोभ नामक चार कषाय रूपी मलसे रहित हैं और छत्तीस गुणोंके पालक होनेसे निर्मल हैं - निष्पाप हैं; समस्त भव्य जीवों को संबोधने के लिये बोधप्राभृत नामक ग्रन्थको संक्षेप से कहूंगा। यह ग्रन्थ पृथिवी, जल, अग्नि वा और वनस्पति इन पांच स्थाबरों तथा एक त्रस इस प्रकार छहकाय के जीवोंके लिये हितकारी है, तथा जिनमार्ग - जिनशास्त्र में केवलज्ञान से युक्त जिनेन्द्रभगवान् ने जैसा कहा है उसीके अनुसार कहा गया है । आचार्योंके छत्तीसगुण इस प्रकार हैं 'आचारवत्वादि आठ, स्थितिकल्प दश, तप बारह और आवश्यक छह, इस प्रकार कुल मिलाकर आचार्यके छत्तीस गुण माने गये हैं । संस्कृत टीकाकार ने 'आचारवान्' आदि श्लोकोंमें उन्हीं का नामोल्लेख किया है १. अष्टावाचारवत्वाद्यास्तपांसि द्वादश स्थितेः । कल्पा वशावश्यकानि षट् षत्रिशद्गुणाः गुराः ॥ ७६ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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