SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 409
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लो.प्र.स. 30 गा. 956-960 उ. पर लेती है। उस बलि को सुगन्धित और सुन्दर बनाने हेतु देवता उसमें दिव्य और सुगन्धित पदार्थ डालते है । इस प्रकार से बलि तैयार किया जाता है। प्र.1420 बलि का विधान कैसे किया जाता है ? तैयार बलि को गीत-गान, वाजिंत्र आदि ठाठ-बाठ के साथ महोत्सवपूर्वक धार्मिक लोगों के द्वारा इसकी महिमा गाते हुए श्रावकों द्वारा जहाँ पर. उसे बनाया है वहाँ से लेकर पूर्व द्वार से समवसरण में लाया जाता है। समवसरण में बलि के प्रवेश होते ही क्षण मात्र के लिए जिनेश्वर परमात्मा देशना फरमाना बंद कर देते है । फिर चक्रवर्ती आदि श्रावकवर्ग बलि सहित परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा देते है, फिर पूर्व दिशा में परमात्मा के सन्मुख आकर उस बलि को मुट्ठीयों में भरकर सभी दिशाओं में उछालते है। जिसके भाग्य में जितना होता है वह उस प्रमाण में उसे प्राप्त करता है । बलि की विधि पूर्ण होते ही परमात्मा तीसरे गढ़ से उतरकर दूसरे गढ़ में ईशान कोण में बने देवच्छंद में जाते है। लोकप्रकाश संर्ग 30 गा. 961-964 प्र.1421 सम्पूर्ण बलि के कितने भाग को देवता ग्रहण करते है ? उ. सम्पूर्ण बलि के आधे भाग (1/2) को देवता पृथ्वी पर गिरने से पूर्व . ही उसे अधर-अधर से ग्रहण कर लेते है। लो.प्र.स. 30 गा. 964 प्र.1422 बलि बनाने वाले (बलिकर्ता) को कितना भाग मिलता है ? उ. देवताओं के ग्रहण करने के पश्चात् शेष बचे आधे भाग का आधा अर्थात् सम्पूर्ण का एक चौथाई (1/4) भाग बलि को तैयार करवाने वालों को मिलता है। लो.प्र.स. 30 गा. 965 ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ परिशिष्ट 394 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy