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________________ तैवीसवाँ चैत्यवंदन प्रमाण द्वार प्र.1293 मुनि भगवंत को अहोरात्र में कितने चैत्यवंदन करने का विधान है ? उ. मुनि भगवंत को अहोरात्र में सात चैत्यवंदन करने का विधान है। प्र.1294 मुनि भगवंत सात चैत्यवंदन कब करते है ? उ. 1. प्रातःकाल के प्रतिक्रमण में 2. मंदिर में, 3. पच्चक्खाण पालते समय गोचरी से पूर्व 4. दैवसिक प्रतिक्रमण से पूर्व, गोचरी के बाद 5. दैवसिक प्रतिक्रमण में 6. रात्रि सोने से पूर्व 7. सुबह जागते समय कुसुमिण दुसुमिण के कायोत्सर्ग के पश्चात् । भाष्य की गाथा के अनुसार उपरोक्त क्रम है। जबकि दिवस के प्रारंभ की अपेक्षा से इनका क्रम निम्न है - 1. सुबह जागते समय कुसुमिण के कायोत्सर्ग के पश्चात् 2. प्रातःकाल प्रतिक्रमण में 3. जिन मंदिर में. 4. प्रातःपच्चक्खाण पारते समय 5. आहार संवरण (संध्या गोचरी के पश्चात् पच्चक्खाण के समय) 6. देवसिक प्रतिक्रमण में 7. रात्रि में सोते समय (राइय संथारा)। । प्र.1295 खरतरगच्छ परम्परानुसार मुनि भगवंत सात चैत्यवंदन कौनसे करते है ? 3. 1. प्रभात काल में 'जयउ सामिय' का चैत्यवंदन, कुसुमिण दुसुमिण कायोत्सर्ग के पश्चात् । 2. राइय प्रतिक्रमण में परसमय तिमिर तरणिं' (साधुजी भगवंत) और 'संसार दावा-नल-दाह-नीरं'. (साध्वीजी भगवंत) का चैत्यवंदन । 3. परमात्मा के दर्शन करते समय मंदिर में कोई सा भी चैत्यवंदन । चैत्यवंदन भाष्य: प्रश्नोत्तरी . . 355 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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