SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 361
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्र. 1274 स्तव किसे कहते है ? उ. बावीसवाँ स्तवन द्वार 'सक्कय भासाबद्धो, गंभीरत्थो थओ त्ति विक्खाओ ।' संस्कृत भाषा में रचित गंभीर अर्थ वाले श्लोक स्तव कहलाते है । प्र. 1275 भाव स्तव की व्याख्या कीजिए । 'सद्गुणोत्कीर्तना भाव: ' सत् + गुण+उत् + कीर्तन 346 सत् - विद्यमान, वास्तविक उत्- परम भक्ति कीर्तन - स्तुति, गुणगान परमात्मा में विद्यमान वास्तविक गुणों का उत्कीर्तन करना (स्तुति, स्तवना), भाव स्तव कहलाता है 1 प्र. 1276 चतुर्विंशति स्तव के लक्षण बताइये । उ. 1. ऋषभ, अजित आदि चौबीस तीर्थंकरों के नाम की निरुक्ति के अनुसार अर्थ करना, उनके असाधारण गुणों को प्रकट करना, उनके चरणों को पूजकर मन, वचन और काय की शुद्धता से स्तुति करना, चतुर्विंशति स्तव कहलाता है । मूलाचार 24 वीं गाथा 2. 'चतुर्विंशति स्तवः तीर्थंकर गुणानुकीर्तनम् ।' तीर्थंकर के गुणों का कीर्तन करना, चतुर्विशति स्तव कहलाता 1 राजवार्तिक 6/24/11/530/12 3. 'चतुर्विंशति संख्यानां तीर्थकृतमात्र नोआगमभाव चतुर्विंशति स्तव इह गृह्यते ।' अर्थात् इस भरत क्षेत्र में वर्तमान कालिक चौबीस तीर्थंकर परमात्मा है, उनमें जो अर्हन्तपना आदि अनन्त गुण है, उनको जानकर तथा उस पर श्रद्धा रखते हुए उनकी Jain Education International बावीसवाँ स्तवन द्वार For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy