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________________ कायोत्सर्ग अवस्था में तान कर स्थिर रहना । 14. वयोपेक्षा विवर्जन - वृद्धावस्था के कारण कायोत्सर्ग को छोड देना या नही करना, वयोपेक्षा विवर्जन दोष है । 15. व्याक्षेपासक्त चित्तता दोष - मन में विक्षेप होना या चलायमान होना व्याक्षिप्त चित्त से प्रतिक्रमण करना, व्याक्षेपासक्तचित्तता दोष है। 16. कालापेक्षा व्यतिक्रम - समय की कमी के कारण कायोत्सर्ग के अंशों को छोड देना, कालापेक्षा व्यतिक्रम है। 17. लोभाकुलता - लोभवश चित्त में विक्षेप होना, लोभाकुलता है। 18. पापकर्मैकसर्गता दोष - कायोत्सर्ग के समय हिंसादि के परिणामों का उत्कर्ष होना, पापकर्मैकसर्गता नामक दोष है । सावध चित्त से कायोत्सर्ग करना। 19. मूढता दोष - कर्तव्य - अकर्तव्य के विवेक से शुन्य होना, मूढता दोष है । विमूढ चित्त से कायोत्सर्ग करना । 20. अंगोपांग अव्यवस्थित रखकर कायोत्सर्ग करना । 21. लुब्ध चित्त से कायोत्सर्ग करना । 22. व्रत की अपेक्षा से रहित कायोत्सर्ग करना । 23. अविधि से कायोत्सर्ग करना । 24.. पट्टकादि के उपर पैर रखकर कायोत्सर्ग करना। . 25. समय व्यतीत होने के पश्चात् कायोत्सर्ग करना । चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 331 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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