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________________ प्र.1169 'डक्को' आगार को समझाइये | उ. कायोत्सर्ग अवस्था में सर्पादि प्राणघातक जीवों के दंश (डंक) लगने की सम्भावना हो तो चलते कायोत्सर्ग में अन्यत्र जाना पडे, तब भी कायोत्सर्ग भंग नही होता है । प्र. 1170 किन-किन अवस्थाओं में कायोत्सर्ग भंग का दोष लगता है ?. विशिष्ट प्रमाण (नियत प्रमाण ) का चिंतन पूर्ण करने से पूर्व 'नमो अरिहंताणं' उच्चारण करने पर और नियत प्रमाण तकं कायोत्सर्ग करने के पश्चात् 'नमो अरिहंताणं' उच्चारण नही करने पर कायोत्सर्ग भंग का दोष लगता है । प्र. 1171 कायोत्सर्ग में आगार (अपवाद) का विधान क्यों किया गया ? आगार की प्ररूपणा शरीर की सुविधा के लिए नहीं, अपितू कायोत्सर्ग की विशुद्ध पालना से है । आगम में कहा वयभंगे गुरूदोसो थेवस्स वि पालणा गुणकारी उ । गुरू लाघवं च णेयं धम्मम्मि, अओ उ आगारा ॥ अर्थात् बडा व्रत लेकर उसको खण्डित करने पर व्रत भंग का बडा दोष लगता है, वहीं छोटा व्रत लेकर उसकी सम्यक पालना करने पर अधिक उ. है । इन परिस्थितियों के अन्तर्गत चालु कायोत्सर्ग में अन्यत्र जाना पडे तब भी कायोत्सर्ग भंग नही होता है I उ.. 310 I लाभ प्राप्त होता है । प्रतिज्ञा खण्डन में महान दोष है, पर अल्प भी पालन गुणकारी है। धर्म साधना में गौरव - लाघव का विचार करना, बहुत गुण और अनिवार्य अल्प दोष का ख्याल रखना, ताकि अल्प गुण के लोभवश महान दोष के भागी न बन जाए। इस अपेक्षा ( हेतु) से आगार Jain Education International For Personal & Private Use Only उन्नीसवाँ आगार द्वार www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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