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________________ चोर और राजा का क्षोभ व सर्प डंस; ये चार आगार - और समझना । प्र.1162 महर्षि प्रणीत शास्त्र ललीत विस्तरा में 'एवमाहिं' शब्द से कौन से आगारों का उल्लेख किया गया है ? 'अगणि उ छिंदिज्ज व, बोहिय खोभाइ दीहडक्को वा । , आगारेहिं अभग्गो उसग्गो एवमाईएहिं || 1. अगणि (अग्नि) 2. छिंदिज्ज (छेदन, आड), 3. बोहिय (बोधि) 4. खोभाइ (क्षोभ, भय) 5. दीहडक्को (दंश) इन पांच आगारों का उल्लेख किया गया है । प्र.1163 ऐसे कौनसे आगार है, जिसमें कायोत्सर्ग मुद्रा में नियत स्थान से हटकर अन्य स्थान पर जाने पर भी कायोत्सर्ग अखंड रहता है ? उ. निम्न पांच आगार है - 1. अग्नि स्पर्श (अगणि) 2. पंचेन्द्रिय छेदन (छिंदिज्ज) 3. चोर और राजा का क्षोभ (खोभाइ) 4. बोध सम्यक्त्व (बोहिय) का क्षय / घात हो 5. सर्प डंश ( दीहडक्को) । प्र.1164 अगणि' आगार से क्या तात्पर्य है ? उ. उ. कायोत्सर्ग में दीपक, बिजली, अग्नि आदि का प्रकाश शरीर पर पडता हो, तब आगार युक्त कायोत्सर्ग चालु रखकर प्रकाश रहित स्थान पर या शरीर ढकने हेतु ऊनी वस्त्र ग्रहण करने के लिए अन्यत्र जाने पर भी कायोत्सर्ग भंग नही होता है कायोत्सर्ग अखण्ड रहता है, शेष बचा कायोत्सर्ग हम दुसरे स्थान पर जाकर कर सकते है | प्र. 1165 'नमो अरिहंताणं' बोलकर कायोत्सर्ग पारकर ही प्रावरण आदि को ग्रहण क्यों नही करते है ? 308 Jain Education International उन्नीसवाँ आगार द्वार For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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