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________________ प्र. 995 जिन किसे कहते है ? उ. जिन्होंने रागद्वेष को जीत लिया है, वे जिन कहलाते है। तीर्थंकर परमात्मा, केवली भगवंत और सिद्ध परमात्मा जिन कहलाते है । प्र.996 नाम जिन, स्थाना जिन, द्रव्य जिन और भाव जिन ये चार भेद किस अपेक्षा से किये है ? उ. निक्षेप की अपेक्षा से किये है। प्र.997 निक्षेप से क्या तात्पर्य है ? उ. पन्द्रहवाँ जिन द्वार उ. जिसके द्वारा वस्तु का ज्ञान में क्षेपण किया जाय या उपचार से वस्तु का जिन प्रकारों से आक्षेप किया जाय उसे निक्षेप कहते है । 'संशय विपर्यये अनध्यवसाये वा स्थितस्तेभ्योऽपसार्य निश्चये क्षिपतीति निक्षेप:' संशय, विपर्यय और अनध्वसाय में अनवस्थित वस्तु को निकालकर जो निश्चय में क्षेपण करता है, उसे निक्षेप कहते है अर्थात् जो अनिर्णीत वस्तु का नामादिक द्वारा निर्णय करावे, उसे निक्षेप कहते है । धवला 4 / 1, 3, 1/2/2/6 अप्रकृत का निराकरण करके प्रकृत का निरुपण करने वाला निक्षेप कहलाता है। प्र.998 निक्षेप कितनी प्रकार से करना सम्भव है ? चार प्रकार से Jain Education International 1. किसी वस्तु के नाम में उस वस्तु का उपचार या ज्ञान - नाम निक्षेप । 2. उस वस्तु की मूर्ति या प्रतिमा में उस वस्तु का उपचार या ज्ञान चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी धवला For Personal & Private Use Only 261 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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