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________________ क्रिया करता हो । 4. उचित आवाज - मधुर, सुरीली व मन्द आवाज में चैत्यवंदन करता हो, ताकि दूसरों को चैत्यवंदनादि धर्म क्रिया में खलल न हो। 5. सूत्र पाठ में दंत चित्तता - मन सूत्रों के अर्थ में डूबा रहे, न कि अन्य चेष्टा हेतु इधर-उधर भटके । प्र.637 उचित वृत्ति गुण सम्पन्न अधिकारी किन बाह्य लक्षणों से पहचाना जायेगा ? उ. 1. लोक प्रियता - आचार विचार की शुद्धता के कारण वह सर्व प्रिय हो । 2. अनिन्द्य क्रिया- लोक निंदा हो ऐसा कृत्य नही करता हो । 3. संकट में धैर्य - संकट आने पर भी वह विवेक व धैर्य को बरकरार रखता हो । परमात्मा पर सदैव विश्वास रखता हो। 4. शक्ति अनुसार दान - शक्ति को बिना छुपाये दानादि देने में तत्पर हो। 5. ध्येय का निर्णित ख्याल - क्रिया के परिणाम को अच्छे से जानने वाला । प्र.638 चैत्यवंदन के अधिकारी के नाम बताइये ? उ. चैत्यवंदन के अधिकारी अपुनर्बंधक, सम्यग्दृष्टि, देशविरत और सर्वविरत जीव होते है। प्र.639 चैत्यवंदन कितने प्रकार से किया जाता है ? उ. दो प्रकार - 1. द्रव्य से 2. भाव से । प्र.640 द्रव्य चैत्यवंदन कितने प्रकार का होता है ? उ. दो प्रकार का- 1.प्रधान द्रव्य वंदना 2. अप्रधान द्रव्य वंदना । | +++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ . चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 175 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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