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________________ उपरोक्त कथित दोनों प्रकार की वंदना में चैत्यवंदन के सूत्र, सम्यग् श्रद्धा भावों के अभाव से उच्चारित किये जाते है। श्रद्धा भाव के अभाव के कारण इन्हें सावद्यमय वंदन कहा है । प्र.627 द्रव्य व भाव दोनों से शुद्ध और भाव से शुद्ध परन्तु द्रव्य से अशुद्ध, उपरोक्त दोनों प्रकार की चैत्यवंदना कौन कर सकते है ? " भव्या वि एत्थ णेया, जे आसन्ना ण जाइमे तेणं । जमणाइ सुए भणियं, एयं ण उ इट्ठफल जणगं ॥ " आसन्न भव्य जीव कर सकते है । प्र.628 आसन्न भव्य से क्या तात्पर्य है ? उ. उ. उ. जिसका संसार काल एक पुद्गल परावर्त काल से अधिक न हो, थोडे ही समय (काल) के पश्चात् मोक्ष को प्राप्त करने वाले होते है ऐसे निकट मोक्षगामी जीव को आसन्न भव्य जीव कहते है । प्र.629 आसन्न भव्य जीव के क्या लक्षण होते है ? उ. भावपूर्वक विधि का सेवन करने वाला और विधि के प्रति बहुमान भाव रखने वाला जीव, आसन्न भव्य जीव होता है । उ. प्र. 630 विधिपूर्वक भाव युक्त चैत्पवंदन करने से क्या फल मिलता है ? इहलोक में धन-धान्यादि की वृद्धि, क्षुद्रोपद्रव का नाश होता है और परलोक में विशिष्ट देवलोक की प्राप्ति और अन्त में परिणाम स्वरुप मोक्ष रुपी शुभ फल की प्राप्ति होती है । प्र. 631 अविधि से करने पर क्या हानि होती है ? पंचाशक प्रकरण गाथा 47 उ. उन्माद, रोग, धर्मभ्रंश आदि अनर्थ रुप हानि होती है I प्र. 632 चैत्यवंदन का अधिकारी किन गुणों से युक्त होना चाहिए ? 172 Jain Education International For Personal & Private Use Only पांचवाँ चैत्यवंदना द्वार. www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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