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________________ 1. जिनमंदिर में प्रवेश के समय - मूल गंभारे के पास पहुंचते समय तीन बार घंटनाद किया जाता है । इसका कारण है कि मन, वचन व काया, इन तीन योग से मैं संसार के समस्त क्रिया-कलापों का त्याग करता हूँ, स्व को परमात्म स्वरुप से जोडता हूँ। 2. परमात्मा के अभिषेक के समय - अभिषेक के समय मन के .आनन्दोल्लास को प्रकट करने एवं जिनेश्वर परमात्मा अब मेरे हृदयांगन में विराजमान हो रहे ऐसा इंगित (सुचित) करने के लिए दूसरी बार अभिषेक के समय घंटनाद किया जाता है। 3. द्रव्य पूजा की समाप्ति एवं भाव पूजा के प्रारंभ में -भाव पूजा के प्रारंभ के समय सतावीस बार घंटनाद किया जाता है । क्योंकि भाव पूजा के अधिकारी साधु होते है, जिनके सतावीस गुण होते है। इन सतावीस गुण से युक्त मुझे साधु जीवन की प्राप्ति हो, इस उद्देश्य से तीसरी बार सतावीस बार घंटनाद किया जाता है। 4. जिनमंदिर से बाहर निकलते समय - जिनमंदिर से बाहर निकलते समय सात भयों से मुक्त बनने के लिए सात बार घंटनाद किया जाता प्र.394 मूल गंभारे के प्रवेश स्थान पर नीचे की ओर कौनसे तिर्यच प्राणी की आकृति होती है ? : उ. दो सिंह की आकृति होती है। प्र.395 सिंह किसके प्रतीक है ? उ. व्याघ्र रागों - द्वेष केसरी अर्थात् राग व द्वेष के प्रतीक है। +++++++++++++ +++++++++++++++++++++++++ चतुर्थ पूजा त्रिक 96 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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