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________________ ६. संस्तारक-संस्तारक का अर्थ है तृण आकद की शैया। जो मृत्यु के समय अनशन व्रत स्वीकार करते समय तृण की शैया के बिछाने का वर्णन है। अनेक दृष्टान्तों के माध्यम से इसकी विशेषताओं को स्पष्ट किया है। साधना पद्धति में संस्तारक का महत्त्वपूर्ण स्थान है । संयमी साधक संस्तारकपूर्वक मृत्यु को सफल बनाता है। संस्तारक पर आसीन श्रमण पण्डित मरण को प्राप्त करने वाला होता है। संस्तारक की उपमा देते हुए लिखा है कि जैसे पर्वतों में मेरु, समुद्रों में स्वयंभू-रमण और तारों में चन्द्र श्रेष्ठ है। उसी प्रकार सुविहितों में संथार (संस्तारक) सर्वोत्तम है। इस तरह यह संस्तारक नाम प्रकीर्णक श्रेष्ठ कर्मों की ओर अङ्गित करने वाला है। इसमें अर्णिका पुत्र, सुकोशल ऋषि, अवन्ति कातिकार्य, चाणक्य, अमृत घोष, चिलाति पुत्र, गज सुकुमाल आदि महान् आत्माओं की प्रशंसा की गई है। ७. गच्छाचार-यह प्रकीर्णक गच्छ में रहने वाले श्रमण-श्रमणियों के आचार का विवेचन करने वाला है। इसमें कुल १३७ गाथाएँ हैं। यह महानिशीथ कल्प सूत्र और व्यवहार सूत्र के आधार पर प्रस्तुत किया गया है।३१ आनन्द विमल सूरि के शिष्य विजय विमल गणि ने इस पर टीका लिखी है। इसका सम्पूर्ण प्रतिपाद्य विषय चारित्र की उज्ज्वलता को प्रस्तुत करना है। गच्छ प्रभावशाली होता है, उसमें रहने से निर्जरा होती है तथा दोषों की उत्पत्ति नहीं होती है। सुगच्छ उसे ही माना है जिसमें दान, शील, तप और भावना प्रधान धर्म का आचरण होता है गच्छाचार के इस प्रकीर्णक में श्रमण-श्रमणियों की मर्यादा का भी विवेचन है तथा इसमें ज्ञान, दर्शन और चारित्र की प्रधानता पर भी बल दिया गया है। ८. गणिविद्या-यह प्रकीर्णक ८२ गाथाओं से युक्त है। इसमें दिन, तिथि. नक्षत्र करण, गृह दिवस, मुहूर्त, शकुन, लग्न और निमित्त आदि विषयों का विवेचन है। ज्योतिष सम्बन्धी यह प्रकीर्णक शुभ योग के विषय को ही प्रतिपादित करने वाला है। शुभाशुभ तिथियाँ कौनसी हैं .इसकी भी इसमें जानकारी दी गई है। ९. देवेन्द्र स्तव२—इस प्रकीर्णक में ३२ देवेन्द्रों का वर्णन है। इसमें ३०७ गाथाएँ हैं। देवेन्द्र और देवेन्द्रों के अधीन रहने वाले सूर्य, चन्द्र आदि देवों, उनके निवास-स्थानों, उनकी स्थिति, उनके भवन और उनके परिग्रह आदि का विवेचन है। सांस्कृतिक दृष्टि से भी इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। १०. मरण समाधि-इसका दूसरा नाम मरण विभक्ति है। मूलतः यह प्रकीर्णक मरण विभक्ति, मरण विशोधि, मरण समाधि संलेखनाश्रृत भक्त-परिज्ञा, आतुर प्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, आराधना के विषय को प्रतिपादित करने वाला है। इसमें बारह प्रकार के तपों का विवेचन आभ्यन्ता और बाह्य संलेखना की विधि एवं धर्म से सम्बन्धित बारह भावनाओं पर भी प्रकाश डाला गया है। आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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