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________________ निर्जरा के लिये सदैव प्रयत्नशील होता है प्रायश्चित्त विधि - पूर्वक दोषों का परिहार है । इस तरह छेद सूत्र आचार धर्म के निरूपण करने वाले महत्त्वपूर्ण सूत्र कहे जा सकते हैं। छेद-सूत्रों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है करता १. निशीथ — आचार, अग्र, प्रकल्प और चूलिका ये निशीथ के पर्यायवाची शब्द हैं । निशीथ को अग्र भी कहा जाता है। इसमें श्रमण - श्रमणी के आचार-विचार, गोचरी - भिक्षाचारी, कल्प क्रिया आदि सामान्य नियमों का वर्णन है । इसमें द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, उत्सर्ग और अपवाद मार्ग का वर्णन है । इस आगम में मुख्य रूप से श्रमणाचार का वर्णन है । निशीथ सूत्र आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुत स्कंध की पाँचवीं चूला है । निशीथ में पाँच महाव्रत, पञ्च समिति, तीन गुप्ति आदि से शुद्धिकरण पर बल दिया गया है इसमें प्रायश्चित्त विधि आदि का भी उल्लेख है । 1 1 २. बृहत्कल्प-सूत्र—कल्प या बृहत्कल्प का कल्पाध्ययन नाम भी मिलता है यह आगम श्रमण आचार के प्राचीनतम ग्रन्थों में से एक है। निशीथ और व्यवहार की तरह इसकी भाषा भी प्राचीन है । इसमें मुख्य रूप से साधु-साध्वियों के आचार का वर्णन है । दस प्रकार के प्रायश्चित्त का इसमें उल्लेख है । यह कल्प के भेदों का भी उल्लेख करता है 1 इसमें छ: उद्देशक हैं तथा यह ८१ अधिकारों में विभक्त है। इसके सूत्रों की कुल संख्या २०६ है जो ४७३ श्लोक प्रमाण है । - सांस्कृतिक एवं धार्मिक दृष्टि से भी इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसमें ग्राम, नगर, राजा आदि का वर्णन है । यह धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक तथ्यों की सामग्री को प्रस्तुत करने वाला सूत्र ग्रन्थ भी है। ३. व्यवहार-सूत्र— श्रमणों की समाचारी वृत्ति को प्रतिपादित करने वाला यह सूत्र कई प्रकार की महत्त्वपूर्ण जानकारी को प्रस्तुत करता है । श्रमण गण से अलग होकर एकाकी विचरण नहीं कर सकता है; क्योंकि इससे शिथिलाचारी का दोष लगता है । श्रमण अपने किए हुए दोषों की आलोचना आचार्य या उपाध्याय के समक्ष प्रायश्चित्त लेकर करता है। उनके अभाव में बहु श्रुत ज्ञानी के समक्ष कृत कर्मों की आलोचना करता है । इस प्रकार से यह व्यवहार - सूत्र आचार संहिता का उपदेशक सूत्र है। इसमें दस उद्देशक हैं। यह २६७ सूत्रों में विभक्त है। 1 ४. दशा- श्रुतस्कन्ध-सूत्र—–—इसका अपर नाम आचार दशा है। इसमें दस अध्ययन हैं? १६३० अनुष्टुप छन्द प्रमाण इसको सीमा है। २१६ गद्य सूत्र हैं। इसमें पर पद्यमय सूत्र हैं। इसके आठवें अध्ययन में श्रमण भगवान् महावीर के जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान प्राप्ति एवं मोक्ष आदि का वर्णन है । काव्यमय भाषा में २४ तीर्थकरों की स्थिति है । इस तरह यह महावीर के आचार-विचार की शिक्षा के साथ श्रमण-श्रमणियों आचाराड्-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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