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________________ की टीका प्रसिद्ध है। हरिभद्र और देवसूरि ने भी इस पर अपनी वृत्ति रची है। जीवाभिगम पर चूर्णि भी प्राप्त होती है। यह सूत्र नौ प्रकरणों में विभक्त है, जिसमें २२७ सूत्र हैं। इसमें सांस्कृतिक सामग्री की प्रचुरता भी देखने को मिलती है; क्योंकि इसके प्रकरणों में विविध प्रकार के धातुओं का विवेचन, अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन, भवन-वस्त्र आदि का उल्लेख एवं विविध प्रकार के रोगों का भी विवेचन है। इसलिए यह सांस्कृतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इसमें स्थापत्य कला का भी वर्णन है। ४. प्रज्ञापना सूत्र.-प्रज्ञापना का अर्थ है-प्रकर्ष रूप से ज्ञापन करना-जानना । जिस आगम द्वारा पदार्थ के स्वरूप को प्रकर्ष व्यवस्थित रूप से जाना-समझा जाए, उसे प्रज्ञापना कहते हैं। इसमें जीव, अजीव, आस्त्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष का वर्णन है। प्रज्ञापना में ३४९ सूत्र हैं जो ३६ पदों में विभक्त हैं १. प्रज्ञापना, २. स्थान, ३. अल्प बहुत्व, ४. स्थिति, ५. पर्याप्त, ६. उपपातोद्वर्तन, ७. उच्छवास, ८. संज्ञा, ९. योनि, १०. चरम, ११. भाषा, १२. शरीर, १३. परिणाम, १४. कषाय, १५. इन्द्रिय, १६. प्रयोग, १७. लेश्या, १८. कार्यस्थिति, १९. सम्यक्त्व, २०. अन्तःक्रिया, २१. अवगाहन; २२. क्रिया, २३ कर्म प्रकृति, २४. कर्म बन्ध, २५. कर्म वेद, २६, कर्म वेद बन्ध, २७. कर्म प्रकृति वेद, २८. आहार, २९. उपयोग, ३०. पश्यत, ३१. संज्ञा, ३२. संयम, ३३. ज्ञान परिणाम, ३४. प्रविचार परिमाण, ३५. वेदना और ३६. समुद्घात। इसमें विविध प्रकार की भाषाओं का भी उल्लेख है। अर्ध मागधी भाषा को आर्य भाषा कहा है। इसी प्रसंग में ब्राह्मी, यावनी, खरोष्ठी, अङ्कलिपि और आदर्श लिपि आदि का उल्लेख है। __५. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति जम्बूद्वीप एवं उसमें स्थित भरत क्षेत्र आदि का वर्णन इस आगम की प्रमुख विशेषता है। यह भौगोलिक विषय को प्रतिपादित करने वाला महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें अवसर्पिणि और उत्सर्पिणि इन दो कालों का वर्णन है। ये काल और रूप में प्रसिद्ध हैं। इसके प्रथम, द्वितीय और तृतीय आरे में दस कल्प वृक्षों का वर्णन है तथा तृतीय एवं चतुर्थ आरे में भावी तीर्थंकरों, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव आदि प्रतिनारायणों का भी विवेचन है। ____ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति पर कई टीकाएँ रची गई हैं। जिनमें धर्मसागर उपाध्याय की टीका प्रसिद्ध है। इस पर पुण्यसागर उपाध्याय ने भी टीका रची है। शान्तिचन्द्र वाचक ने प्रमेय-रत्न-मञ्जूषा नाम से टीका रची है। इसके अतिरिक्त बह्मर्षि की भी टीका है। यह आगम दो भागों में विभक्त है। पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध । पूर्वार्द्ध में चार और उत्तरार्द्ध में तीन वच्छकार हैं, जो १७६ सूत्रों में विभक्त हैं। इस तरह यह आगम आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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