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________________ (८) अनुयोगद्वार चूर्णि-(प्राकृत पद्य), (९) ध्यान शतक (प्राकृत पद्य)।। उक्त सभी भाष्य श्रमण परम्परा के मूल्यों को भी स्थापित करते हैं। जिनभद्रगणी ने जिस शैली को अपनाया है, वह शास्त्रीय होते हुए भी सरल, सुगम एवं शब्द और अर्थ की गम्भीरता को अभिव्यक्त करने वाली है। द्वितीय भाष्यकार संघदासगणी का स्थान भी महत्त्वपूर्ण है। वे आगममर्मज्ञ थे। फिर भी उन्होंने श्रमणचर्या के आचार-विचार को बनाए रखने के लिए छेदसूत्रों पर प्रकाश डाला, उन पर लेखनी चलाई और श्रमण-श्रमणियों के प्रायश्चित्त विषयक समस्त कारणों पर इतना अधिक प्रकाश डाला कि उनके एक-एक अंश पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है। इनमें समाचारी का उल्लेख महत्वपूर्ण है, जिसमें प्रतिलेखना, निष्कमण, प्राभृतिका, भिक्षा, अल्पकरण, गच्छशतिकारि, अनुयान, पुर:कर्म, ग्लान, गच्छ, प्रतिबद्ध, यथालंदिक, उपरिदोष और अपवाद जैसे विषय को प्रतिपादित किया। इसी में श्रमण-श्रमणियों की मर्यादा, विहार, आहार आदि का उल्लेख भी किया। मूलतः संघदासगणी ने बृहत्कल्पलघ्नु भाष्य और पंचकल्प महाभाष्य जैसे भाष्यों द्वारा श्रमणों के विवेकपूर्वक गमन-आगमन, विहार आदि में लगने वाले दोषों की आलोचना पर विस्तृत प्रकाश डाला। आगम का चूर्णि साहित्य नियुक्ति एवं भाष्य के पश्चात् चूर्णि साहित्य की रचनाएँ भी विशेष महत्व रखती हैं जो प्राकृत और संस्कृत मिश्रित व्याख्याएँ हैं। आगमों पर लिखी गई चूर्णियाँ निश्चित ही अर्थ और शब्द के चूर्ण हैं, रहस्य हैं, भावाभिव्यक्ति है और जन-जन की भावना भी है। इन आगमों के मूल में जीवन जीने की कला भी है। आगमों पर लिखी गई चूर्णियाँ, अंतःसाक्षी का विषय भी अभिव्यक्त करती हैं। चूर्णियाँ आगम एवं आगमेतर दोनों ही प्रकार के ग्रंथों पर लिखी गई हैं, ये चूर्णियाँ निम्न हैं _ आचारांग चूर्णि, सूत्रकृतांग चूर्णि, व्याख्याप्रज्ञप्ति चूर्णि, जीवाजीवाभिगम चूर्णि, निशीथचूर्णि, महानिशीथचूर्णि, व्यवहार चूर्णि, दशाश्रुतस्कन्ध चूर्णि, बृहत्कल्प चूर्णि, पंचकल्पं चूर्णि, ओघनियुक्ति चूर्णि, जीतकल्प चूर्णि, उत्तराध्ययन चूर्णि, आवश्यक चूर्णि, दशवैकालिक चूर्णि, नन्दी चूर्णि, अनुयोगद्वार चूर्णि और जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति चूर्णि। इन चूर्णियों के चूर्णिकार जिनदासगणी, सिद्धसेनसूरि, अगस्त्यसिंह स्थविर, वज्रस्वामी आदि हैं। निशीथ, नन्दी, अनुयोगद्वार, आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन व सूत्रकृतांग पर जिनदासगणी महत्तर ने चूर्णियाँ लिखीं। सिद्धसेनसूरि ने जीतकल्प चूर्णि, अगस्त्यसिंह ने दशवैकालिक चूर्णि आदि लिखी। इन चूर्णियों की भाषा संस्कृत एवं प्राकृत मिश्रित है। जो सरल, सुबोध और विषय की गहराई में कई प्रकार की (२१) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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